बुधवार, 19 अप्रैल 2017

धार्मिक गुंडागर्दी के खिलाफ आवाज़ उठाना ज़ुर्म है क्‍या


कबीर, रैदास, रसखान की भक्‍ति परंपरा वाले देश में धर्म के मूलभाव की धज्‍जियां किस तरह उड़ाती हैं, यह हम देख सकते हैं सोनू निगम द्वारा अजान पर कहे गए शब्‍दों के बाद आई प्रतिक्रियाओं से। इन शब्‍दों को लेकर सोनू निगम सुर्खियों में हैं, बॉलीवुड यूं भी आजकल अपनी रचनाओं और कृतियों से नहीं बल्‍कि ट्विटर पर अपने विचारों से सुर्खियों में रहने की कला आजमा रहा है।

दरअसल सोनू निगम ने एक के बाद एक लगातार तीन ट्वीट किये और अपनी  नींद में खलल डालने के लिए अजान की आवाज को दोषी बताते हुए कहा कि  इस गुंडागर्दी पर लगाम लगनी चाहिए। अजान का नाम आया तो ज़ाहिर है  बवाल होना ही था।

बवाल यहां तक बढ़ा कि आज बुधवार को सुबह सोनू निगम ने पश्चिम बंगाल के एक मौलवी के बयान पर अपने बाल मुंडवाने का एलान कर दिया था. सोनू निगम ने ट्वीट करते हुए कहा, ' आज दोपहर 2 बजे आलिम आएगा और मेरा सिर मुंडेगा. अपने 10 लाख रुपये तैयार रखो मौलवी'. सोनू ने इसके साथ ही अपने अगले ट्वीट में प्रैस को भी इसके लिए निमंत्रण दे दिया.
दरअसल डीएनए में छपी एक खबर में पश्चिम बंगाल अल्‍पसंख्‍यक युनाइटेड काउंसिल के एक वरिष्‍ठ सदस्‍य का बयान दिया है, 'यदि कोई उनका सिर मुंडवा कर, उनके गले में जूते की माला डालकर देश में घुमाएगा तो मैं खुद उस शख्‍स के लिए 10 लाख रुपये के पुरस्‍कार का एलान करता हूं.'

सोनू निगम ने अपने ट्वीट पर उठे विवाद पर की प्रेस कॉन्‍फरेंस में यह साफ कर दिया है कि वह किसी धर्म के विरोध में नहीं हैं और वह अपने मुस्लिम दोस्‍तों से उतना ही प्‍यार करते हैं. सोनू निगम ने अपने बाल कटवा लिए हैं. सोनू निगम ने कहा कि मेरा उद्देश्‍य किसी को चोट पहुंचाना या किसी की भी धार्मिक भावनाओं को आहत करना नहीं था. उन्‍होंने दुख जताया है कि लोगों ने उनका मुद्दा समझने के बजाए उनकी बात को पकड़ा और उसके खिलाफ विवाद खड़ा कर दिया. सोनू ने अपने दावे को पूरा करते हुए अपना सिर मुंडवा का फैसला लिया है और इस काम के लिए उन्‍होंने अपने मुस्लिम दोस्‍त आलिम को चुना. आलिम हकीम सेलेब्रिटी हेयरस्‍टाइलिस्‍ट हैं. सोनू निगम ने कहा, मैं सोच भी नहीं सकता था कि इतनी छोटी सी बात इतनी बड़ी बन जाएगी.

सोनू ने कहा कि मगर आज भी मैं यही कहूंगा  कि ये गुडागर्दी है कि मैं मुस्‍लिम नहीं हूं फिर  भी जबरन मैं अजान क्‍यों सुनूं,  यही बात मंदिर-चर्च-गुरुद्वारा या ऐसे किसी भी ऑरगेनाइजेशन के लिए भी  कहूंगा।  

भारतीय जनमानस में धर्म के प्रति कटमुल्‍लावाद और कट्टरता इस हद तक  समाहित होता गया कि धर्म से जुड़ी कोई बात उठी नहीं कि हाज़िर हो जाते हैं  आलोचक एक दम बर्र के टूटे छत्‍ते की तरह। यही हुआ और आज सुबह तक  सोनू निगम अपने आलोचकों को अपनी बात का मर्म समझा रहे हैं।

कला की आलोचना समालोचना करते हुए किसी को कोई तकलीफ नहीं होती  मगर धर्म की बात आते ही इतिहास से निकल-निकल के सामने आती हैं  आलोचनाऐं।

चिंतन, मनन और कर्म का संदेश देते आए कमोवेश सभी धर्मों ने कभी भी  किसी दूसरे को आहत करने की बात नहीं कही।

कबीर का तो पूरा निर्गुण दर्शन प्रैक्‍टीकैलिटी पर ही टिका है जो मुस्‍लिमों को  असल धर्म बताते हुए कहते हैं कि-
कांकर पाथर जोरि कै मज्‍ज़िद लई बना।
ता पर मुल्‍ला बांग दे क्‍या बहरा हुआ खुदा।।

इसी तरह वे हिंदू धर्मावलंबियों से भी अंधे-बहरे बन कर जड़ होने से बाज आने  को कहते हैं-
पाथर पूजें हरि मिलें तौ  मैं पूजूं पहार।
जा ते तो चाकी भली पूज खाय संसार।।

हम सब जानते हैं कि लाउडस्‍पीकर लगाकर आए दिन कानफोड़ू संगीत के साथ  देवी जागरण, अखंड रामायण, श्री मद्भागवत कथा धर्म और ईश्‍वर से  हमें  मिलान के नाम पर ध्‍वनि प्रदूषण फैलाते हैं जिन्‍हें ना किसी बीमार की फिक्र  होती है और न किसी की नींद की।देर रात ड्यूटी से आने वालों की, परीक्षा देने  वाले छात्रों की शामत आ जाती है जब घर या पड़ोस में कोई ऐसा कार्यक्रम  होता है। अजीब बात यह भी है कि चिंतन और मनन करके ईश्‍वर प्राप्‍ति का शांति वाला उपदेश भी इन्‍हीं लाउडस्‍पीकर्स के द्वारा ही दिया जाता है।

तो फिर सोनू निगम कहां गलत हैं। सोनू निगम ने भी यह सच ही तो कहा है ये तो गुंडागर्दी है भाई।

धर्म के आतंक का यह रूप नि:संदेह भर्त्‍सनायोग्‍य है। मस्‍जिद हो, मंदिर हो, चर्च  हो या गुरूद्वारा सभी में लाउडस्‍पीकर्स पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। कई बार  तो सांप्रदयिक विवादों की जड़ में ये लाउडस्‍पीकर ही होते हैं। हालांकि कानूनी  तौर पर निश्‍चित फ्रीक्‍वेंसी पर लाउस्‍पीकर बजाने की इजाजत है मगर कानून  का पालन कितना होता है यह मौजूदा विवाद बता रहा है।

ईश्‍वर की खोज और पूजा पद्धतियों में शामिल होते गए इस शोरशराबे पर क्‍या  हम कबीर के कहे को सच नहीं कर सकते।

- अलकनंदा सिंह


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