शनिवार, 31 दिसंबर 2016

साल 2016: कुछ खूबसूरत pictures और कुछ कहे-अनकहे शब्‍द

सबसे पहले एक quote :
Alireza Asghari says “Camera is the third eye and Scond Heart of A Real Photographer ”
कुछ तस्‍वीरों ने मुझे इस तरह अपनी बात लिखने को बाध्‍य किया।
शुरुआत करती हूं कोलाज नं. 1 से।
27 दिसम्‍बर को गुजरी मिर्ज़ा ग़ालिब की एक और सालगिरह से- हर सालगिरह के खत्‍म होने पर उसमें लगने वाली गिरह (गांठ) और बढ़ जाती हैं, हर साल की तरह इस साल भी 1797 को जन्‍मे मिर्ज़ा की याद उनके चाहने वालों ने एक और गिरह लगाकर मनाई। इस  अवसर पर उनकी एक रियल पिक्‍चर दिखाई दी जो गालिब के दोस्‍त बाबू शिव नारायण की परपोती श्रीमति संतोष माथुर के हवाले से सामने आई।
मिर्जा साहब के ही साथ संलग्‍न दूसरी पिक्‍चर है केरल के वुडवर्क की जिसमें लगभग भुलाई जा चुकी केरल की ऐतिहासिक काष्ठ कला को कलाकार ने कुछ म्‍यूरल्स बनाकर फिर से जीवंत बनाने के लिए बहुत ही अद्भुत प्रयास किया है।



PM modi picकोलाज नं. 2 में पहली पिक्‍चर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिसमें वे दिव्‍यांग युवक की व्‍हीलचेयर को अपने हाथों से आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं, भारत में किसी राजनेता का यह प्रयास जनता में भरोसा जगाने वाला है कि राजनीति इतनी भी बुरी नहीं जितनी हमें दिखाई गई … देश बदल रहा है, सचमुच।
इन्‍हीं के साथ संलग्‍न हैं चार और पिक्‍चर्स जो पाकिस्‍तान के गुजरांवाला में स्‍थित महाराजा रणजीत सिंह की हवेली की हैं , जिन्‍हें हाल ही में पाकिस्‍तान की सरकार ने गिराने का आदेश दिया है। भारत के लिए भी महत्‍वपूर्ण इस धरोहर को इस तरह ज़मींदोज़ किए जाने की खबर सचमुच हम सबके लिए दुखद है। अपने इतिहास को दफनाने का पाप हमें विरासतों से दूर ले जाएगा। एक ओर हम अपने इतिहास को ज़मीन के नीचे से खोज रहे हैं और दूसरी ओर विरासतों को ज़मींदोज़ करना, कैसी विडंबनाओं में जी रहे हैं हम।
इसी कोलाज में नीचे महाराष्‍ट्र के तदोबा टाइगर रिजर्व की एक पिक्‍चर है जहां से गुड न्‍यूज़ आ रही है कि वहां टाइगर की संख्‍या बढ़ रही है।
साथ में लगी पिक्‍चर है उत्‍तराखंड के मसूरी में कभी पाए जाने वाले पक्षी अद्भुत पक्षी माउंटेन क्‍वेल की, जो इस बार भी दिखाई नहीं दिया मगर इसे देखने का क्रेज ऐसा कि लगातार 140 से इसे देखने के लिए पक्षी प्रेमी  ‘राजपुर नेचर फेस्टिवल-2016’ के तहत मसूरी पहुंचते हैं।  पक्षी प्रेमियों को इस बार भी हिमालयन माउंटेन क्वेल (पहाड़ी बटेर) नहीं दिखाई दिया। इसे आज से 140 साल पहले मसूरी के झाड़ीपानी और सुवाखोली में देखा गया था। 140 साल से लगातार इस पक्षी की तलाश में पक्षी प्रेमी हर साल मसूरी का रुख करते हैं, लेकिन लंबे वक्त से उनकी उम्मीदों को धक्का लग रहा है मगर दीवानगी इनकी अब भी बनी हुई है।



auto-naqab-picकोलाज नं. 3 हालांकि इसमें सिर्फ दो पिक्‍चर हैं जो सामाजिक दशा और सोच में पनप रही अपना मत दूसरों पर थोपने की प्रवृत्‍ति की सूचक हैं । इन ‘ऑटोज’ को देखिए जो कथित जेहादियों का पब्‍लिसिटी टारगेट बने हुए हैं, प्रगति के इस समय में देश की मुस्‍लिम महिलाओं को बुरके में रखने के लिए एक ऐसा अभियान चलाए हुए हैं जिसे भयभीत करने वाला कहा जा सकता है और जो कट्टरवाद की ओर तेजी से बढ़ रहा है। तीन  तलाक  जैसे  मुद्दों  से  ध्‍यान हटाने के  लिए नकाब  में  रहने  के  आदेश महिलाओं  को उस बूढ़ी सदी में भेजने वाले हैं , जहां सिर्फ जहालत रहा करती थी।


कोलाज नं. 4  में वो बच्‍चे शामिल हैं जो हमारे देश- दुनिया के विकसित होते जाने पर प्रश्नचिन्‍ह लगाते हैं कि हमारे दावे उनकी मासूमियत के सामने कहीं नहीं टिकते।
kids-pic-for-new-yearफिर भी जहां कश्‍मीर के भयभीत करने वाले दृश्‍य हमें बचपन को बचाने के लिए सोचने पर विवश करते हैं वहीं सूडान से ली गई अंतर्राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार प्राप्‍त भुखमरी की पिक्‍चर जिसमें एक भूख से मरते हुए बच्‍चे को यानि ”अपने भोजन” को गिद्ध देख रहा है। इसी के साथ दो बच्‍चियों का प्रेम और बड़ी बहन द्वारा छोटी की सुरक्षा, वह भी अभावों के बीच शेयरिंग का अच्‍छा उदाहरण नहीं है बल्‍कि यह भी बताता है कि बेटियां हमेशा ही अपने भीतर इन गुणों को रखती हैं ।
नीचे एक बच्‍ची स्‍वच्‍छ भारत अभियान में अपना योगदान दे रही है।
पूरी दुनिया में भुखमरी, गरीबी, बेजारी से सबसे ज्‍यादा बच्‍चे प्रभावित हुए हैं। इसी बीच लद्दाख की दो पिक्‍चर्स कठिन वक्‍त में शिक्षा, जीवन  और बचपन दोनों की जद्दोजहद को दिखाती हैं, आप भी देखिए….इन्‍हें।

इसी कोलाज के दाहिने तरफ मशहूर शायर वसीम बरेलवी का अपने दस्‍तखत के साथ एक शेर है-
” वह चहता है कि दामन ज़रा बचा भी रहे।
दियों की लौ से मगर खेलने की छूट भी हो।।”
यूं तो इन जैसी अनगिनत पिक्‍चर्स हैं जो अपनी दास्‍तां सुनाने के लिए हमारे किसी शब्‍द की मोहताज नहीं , फिर भी अपना पूरा काम कर जाती हैं।

और अंत में इन पिक्‍चर्स को जो वजूद में लाए और हमें इनसे रूबरू कराया, उनके लिए बस इतना ही कहा जा सकता है कि-
Photography is a love affair with life because emotional content is an image’s most important element, regardless of the photographic technique. images retain their strength and impact over the years, regardless of the number of times they are viewed.

- सभी पिक्‍चर्स साभार ली गई  हैं ।

– अलकनंदा सिंह

बुधवार, 21 दिसंबर 2016

World Short Story Day पर विशेष : कह डालो जो कुछ भीतर छिपा बैठा है

चित्र : साभार गूगल
आज World Short Story Day है और इस अवसर पर हिंदी साहित्य में लघुकथा पर बात ना हो, एेसा हो नहीं सकता। यह एक ऐसी विधा है जिसकी शुरुआत छत्तीसगढ़ के प्रथम पत्रकार और कथाकार माधव राव सप्रे के ''एक टोकरी भर मिट्टी'' से हुई या यूं कहें कि साहित्‍य में ये उसके बाद से ही वजूद में आई।
हिंदी के अन्य सभी विधाओं की तुलना में अधिक लघु आकार होने के कारण यह समकालीन पाठकों के ज्यादा करीब रही है क्‍योंकि इस विधा में सरोकार और कम शब्‍दों दोनों ही एकसाथ समाहित रहे हैं। माधव राव सप्रे के साथ साथ इसे आज की स्थापित ''विधा'' के तौर पर प्रख्‍यात श्रेणी तक पहुंचाने में रमेश बतरा, जगदीश कश्यप, कृष्ण कमलेश, भगीरथ, सतीश दुबे, बलराम अग्रवाल, विक्रम सोनी, सुकेश साहनी, विष्णु प्रभाकर, हरिशंकर परसाई आदि समकालीन लघुकथाकारों का हाथ रहा है। साथ ही कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, बलराम, कमल चोपड़ा, सतीशराज पुष्करणा आदि संपादकों का भी रहा है। इस संबंध में तारिका, अतिरिक्त, समग्र, मिनीयुग, लघु आघात, वर्तमान जनगाथा आदि लघुपत्रिकाओं के संपादकों का योगदान को भी नज़रंदाज नहीं किया जा सकता।

हिन्दी कवि और लेखक बलराम अग्रवाल अपने ब्‍लॉग ''सांचा: लघुकथा वार्ता'' में लिखते हैं पहली हिन्दी लघुकथा के बारे में कि हिन्दी कहानी के विधिवत जन्म लेने से काफी पहले पाश्चात्य विद्वान एडगर एलन पो(1809ई0-1849ई0), ओ0 हेनरी(1862ई0-1910ई0), गाइ द मोपांसा(1850ई0-1893ई0) तथा एन्टन पाब्लोविच चेखव(1860ई0-1904ई0) के माध्यम से कहानी अपने उत्कृष्टतम स्वरूप को प्राप्त कर चुकी थी। भारतीय भाषाओं में बंगला कहानी भी खुली हवा में अपना परचम लहरा चुकी थी।
हिन्दी में परिमार्जित कहानी के रूप में जो रचनाएँ प्रकाश में आई हैं, आमतौर पर सन 1900ई0 के आसपास प्रकाशित हुईं। अलग-अलग कारणों से, पहली हिन्दी कहानी की दौड़ में जो कहानियाँ शामिल हैं, उन्हें उनके प्रकाशन-काल के क्रम में निम्नवत प्रस्तुत किया जा सकता है:-

1 प्रणयिनी परिचय(1887) किशोरीलाल गोस्वामी
2 छली अरब की कथा(1893) संभवत: लोककथा
3 सुभाषित रत्न(1900) माधवराव सप्रे
4 इन्दुमती (1900) किशोरीलाल गोस्वामी
5 मन की चंचलता(1900) माधवप्रसाद मिश्र
6 एक टोकरी भर मिट्टी(1901) माधवराव सप्रे
7 ग्यारह वर्ष का समय(1903) रामचंद्र शुक्ल
8 लड़की की कहानी(1904) माधवप्रसाद मिश्र
9 दुलाई वाली(1907) राजेन्द्र बाला उर्फ बंग महिला
10 राखीबंद भाई(1907) वृंदावन लाल वर्मा
11 ग्राम(1911) जयशंकर प्रसाद
12 सुखमय जीवन(1911) चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’
13 रक्षा बंधन(1913) विश्वम्भर नाथ शर्मा ‘कौशिक’
14 उसने कहा था(1915) चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

दो प्रसिद्ध लघुकथाऐं
अंगहीन धनी
एक धनिक के घर उसके बहुत-से प्रतिष्ठित मित्र बैठे थे। नौकर बुलाने को घंटी बजी। मोहना भीतर दौड़ा, पर हँसता हुआ लौटा।
और नौकरों ने पूछा,“क्यों बे, हँसता क्यों है?”
तो उसने जवाब दिया,“भाई, सोलह हट्टे-कट्टे जवान थे। उन सभों से एक बत्ती न बुझे। जब हम गए, तब बुझे।”
अद्भुत संवाद
“ए, जरा हमारा घोड़ा तो पकड़े रहो।”
“यह कूदेगा तो नहीं?”
“कूदेगा! भला कूदेगा क्यों? लो सँभालो।”
“यह काटता है?”
“नहीं काटेगा, लगाम पकड़े रहो।”
“क्या इसे दो आदमी पकड़ते हैं, तब सम्हलता है?”
“नहीं।”
“फिर हमें क्यों तकलीफ देते हैं? आप तो हई हैं।”

Maya Angelou said  that “There is no greater agony than bearing an untold story inside you.”

एक अनकही कहानी की मौजूदगी से बड़ा कोई दर्द नहीं हो सकता।
तो कह डालो जो कुछ भीतर छिपा बैठा है।
- अलकनंदा सिंह

सोमवार, 19 दिसंबर 2016

Police हिरासत: 5 साल में 600 मौतें, लेकिन जिम्‍मेदार कोई नहीं

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है. 114 पन्ने की यह रिपोर्ट सोमवार को जारी की गई













साल 2010 से 2015 के बीच भारत में Police हिरासत में तकरीबन 600 लोगों की मौत हुई है.
मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है. 114 पन्ने की यह रिपोर्ट सोमवार को जारी की गई.
रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान हिरासत में किसी भी कैदी की मौत के लिए एक भी पुलिस वाले को दोषी करार नहीं दिया गया है.
हिरासत में होने वाली मौत के मामलों में पुलिस अक्सर बीमारी, भागने की कोशिश, खुदकुशी और दुर्घटना को कारण बताती है लेकिन मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले समूहों का आरोप है कि इनमें से ज्यादातर मौतें हिरासत में प्रताड़ना की वजह से होती हैं.
हालांकि सरकारी पक्ष इन आरोपों से इंकार करता है. ताज़ा रिपोर्ट में 2009 से 2015 के दरमियां ‘हिरासत में हुई मौत’ के 17 मामलों की ‘गहन पड़ताल’ का दावा किया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक इस सिलसिले में पीड़ित परिवारों के लोगों, गवाहों, कानून के जानकारों और पुलिस अधिकारियों के 70 इंटरव्यू किए गए.
रिपोर्ट कहती है कि इन 17 मामलों में से एक भी केस में पुलिस ने गिरफ्तारी की वाजिब प्रक्रिया का पालन नहीं किया था जिससे संदिग्ध के साथ बदसलूकी होने की संभावना बढ़ गई थी.
मानवाधिकार संस्था के मुताबिक सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 में पुलिस हिरासत में हुई 97 मौतों में से 67 में पुलिस ने या तो संदिग्ध को 24 घंटे के भीतर मेजिस्ट्रेट के सामने पेश ही नहीं किया या फिर संदिग्ध की गिरफ़्तारी के 24 घंटे के भीतर ही मौत हो गई.

शनिवार, 17 दिसंबर 2016

रूमी की जीवनी: ब्रैड गूच ने लिखा 800 साल का इतिहास , दर्शन और कविता के नाम

ताजिकिस्‍तान के वाशिंदे और पूरी दुनिया के दार्शनिक कवि जलालुद्दीन रूमी का आज जन्‍मदिन है, इस अवसर पर Brad Gooch के प्रयासों की बात किए बिना कवि के प्रति सच्‍ची श्रद्धांजलि नहीं दी जा सकती।

फारसी के मशहूर शायर और सूफी दिग्गज जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी की लोकप्रियता इतनी है कि 800 सालों बाद भी कविता प्रेमियों के बीच वो सबसे मशहूर कवि माने जा रहे हैं। रूमी का जन्म 1207 में ताजिकिस्तान के एक गांव में हुआ था। उनके जन्म के 800 से ज़्यादा साल बाद भी अमेरिका में उनकी रूबाईयों और ग़ज़लों की किताबों की लाखों प्रतियां बिक रही हैं। 

सारी दुनिया के एक बड़े भूभाग पर दानव की तरह फैल चुकी भूख के लिए कभी रूमी ने कहा था कि -

''भूख के बगैर खाना दरवेशों के लिये सबसे संगीन गुनाह है''
भूख सब दवाओं की है सुल्तान ,खबरदार
उसे कलेजे से लगा के रख, मत दुत्कार।
बेस्वाद सब चीजें भूख लगने पर देती मजा,
मगर पकवान सारे बिन भूख हो जाते बेमजा।
कभी कोई बन्दा भूसे की रोटी था खा रहा
पूछा किसी ने तुझे इसमें कैसे मजा आ रहा।
बोला कि सबर से भूख दुगुनी हो जाती है
भूसे की रोटी मेरे लिये हलवा हो जाती है।''

रूमी की जीवनी लिख रहे ब्रैड गूच कहते हैं, "रूमी का सभी संस्कृतियों पर असर दिखता है।" गूच ने रूमी की जीवनी पर काम करने के लिए उन तमाम मुल्कों की यात्रा की है, जो किसी ना किसी रूप में रूमी से जुड़े रहे।

गूच कहते हैं, "रूमी का जीवन 2500 मील लंबे इलाके में फैला हुआ है। रूमी का जन्म ताजिकिस्तान के वख़्श गांव में हुआ। इसके बाद वे उज्बेकिस्तान में समरकंद, फिर ईरान और सीरिया गए। रूमी ने युवावस्था में सीरिया (शाम) के दमिश्क और एलेप्पो में अपनी पढ़ाई पूरी की।" इसके बाद उन्होंने जीवन के 50 सालों तक तुर्की के कोन्या को अपना ठिकाना बनाया और वहीं रूमी का निधन हुआ था।

 कुछ  किस्‍से सुने  अनसुने  से
ऐसा बताया जाता है कि एक रोज रूमी के किसी मुरीद ने कहा कि लोग इस बात पर एतराज करते हैं कि मसनवी को कुरान कहा जा रहा है तो रूमी के बेटे सुल्तान वलेद ने टोंक दिया कि असल में मसनवी कुरान नहीं कुरान की टीका है। तो रूमी थोड़ी देर तो चुप रहे फ़िर कहने लगे,” कुरान क्यों नहीं है, कुत्ते? कुरान क्यों नहीं है, गधे? अबे रंडी के बिरादर, कुरान क्यों नहीं है मसनवी? ये जानो कि रसूलों और फ़कीरों के कलाम के बरतन में खुदाई राज के अलावा और कुछ नहीं होता। और अल्लाह की बात उनके पाक दिलों से होकर उनकी जुबान के जरिये बहती है।”
माशूक के हुस्न का नशा है, विशाल की आरजू व दर्द है
रूमी में एक तरफ़ तो माशूक के हुस्न का नशा है, विशाल की आरजू व दर्द है; और दूसरी तरफ़ नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की गहराईयों से निकाले मोती हैं। रुमी सिर्फ़ कवि ही नहीं हैं , वे सूफ़ी हैं, वे आशिक हैं, वे ज्ञानी हैं और सब से बढ़कर वे गुरु हैं।

हर कोई भूल जाता है अपने शहर को,
उतरता है जब भी खाबों की डगर को।

और यह भी:

पा गये हो दोस्त तुम कुछ चार दिन के
भूल गये दोस्त, नाता पुराना साथ जिनके।

रूमी की नजर में इंसाफ़-

इंसाफ़ क्या? किसी को सही जगह देना
जुल्म क्या है? उस को गलत जगह देना।
बनाया जो भी खुदा ने बेकार नहीं कुछ है
गुस्सा है, जज्बा है, मक्कारी है, नसीहत है।
इन में से कोई चीज अच्छी नहीं पूरी तरह,
इनमें से कोई चीज बुरी नहीं पूरी तरह।

आशिक और माशूक के रिश्‍ते को भी रूमी कुछ इस तरह कहते हैं।

अपने आशिक को माशूक़ ने बुलाया सामने
ख़त निकाला और पढ़ने लगा उसकी शान में
तारीफ़ दर तारीफ़ की ख़त में थी शाएरी
बस गिड़गिड़ाना-रोना और मिन्नत-लाचारी
माशूक़ बोली अगर ये तू मेरे लिए लाया
विसाल के वक़त उमर कर रहा है ज़ाया
मैं हाज़िर हूं और तुम कर रहे ख़त बख़ानी
क्या यही है सच्चे आशिक़ों की निशानी?

जीवन दर्शन में रूमी के फलसफे पूरी दुनिया के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। जैसे कि-

रूमी ने एक दिन अपने शिष्यों को एक दफा कहा कि तुम मेरे साथ आओ, तुम कैसे हो, मैं तुम्हें बताता हूं। वह अपने शिष्यों को ले गया एक खेत में, वहां आठ बड़े-बड़े गङ्ढे खुदे थे, सारा खेत खराब हो गया था। रूमी ने कहा, देखो इन गङ्ढों को। यह किसान पागल है, यह कुआं खोदना चाहता है, यह चार-आठ हाथ गङ्ढा खोदता है, फिर यह सोच कर कि यहां पानी नहीं निकलता, दूसरा खोदता है। चार हाथ, आठ हाथ खोद कर, सोच कर कि यहां पानी नहीं निकलता, यह आठ गङ्ढे खोद चुका है। पूरा खेत भी खराब हो गया, अभी कुआं नहीं बना। अगर यह एक गङ्ढे पर इतनी मेहनत करता, जो इसने आठ गङ्ढों पर की है, तो पानी निश्चित मिल गया होता।

संकल्प करें, आप कुछ खोद कर लाएं, तो फिर हम और गहरी खुदाई कर सकें। स्मरण रखें कि ध्यान एक भीतरी खुदाई है, जिसको सतत जारी रखना जरूरी है। रूमी हमारे  जीवन  के उन  क्षणों  को  भी  छू  जाते  हैं  जो हम  अपनी  आत्‍मा  तक  से  छुपाए  रखते  हैं,  संभवत:  इसीलिए  वे  आज  तक  इतने  करीब   हैं जन ज जन के।

- अलकनंदा सिंह