शनिवार, 28 नवंबर 2015

#HappytoBleed: ज़मींदोज़ होती ‘उन दिनों’ की बात

विचारों की राजनीति और प्रगतिशील समाज के बीच में अजीब सी रस्साकशी चल रही है। पुरानी सोच अपनी स्थापित ज़मीन छोड़ने को तैयार नहीं और नई उर्वरा शक्तियां उसी ज़मीन को खोद-खोद कर और अधि‍क उर्वरा बनाने को आतुर हैं।
द्वंद है अपने अपने अस्तित्व का … उसकी स्थापना का… । इन सबके बीच जो अभि‍शप्त हैं, अपनी-अपनी गर्दनें ज़मीन में गाड़ लेने के लिए, उन्हें तो समझाना जरूरी हो जाता है ना, और यह जरूरत यदि #HappytoBleed जैसे अभि‍यान के ज़रिये सामने आए तो इसमें आश्चर्य कैसा ?
टैबू बना दिए गये जीवन से जुड़े हिस्सों को अगर नई पीढ़ी खुलेपन का हिस्सा बना रही है तो इसमें हर्ज़ क्या ?
वाकया केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति को लेकर बढ़ा और विवादास्पद बयानों से #HappytoBleed कैम्पेन तक पहुंचा गया। दरअसल त्रावणकोर देवाश्वम बोर्ड के अध्यक्ष प्रयार गोपालकृष्णन ने विवादित बयान दिया कि महिलाओं को प्रसिद्ध साबरीमाला में प्रवेश की अनुमति तभी दी जाएगी जब उनकी शुद्धता की जांच करने वाली मशीन का आविष्कार हो जाएगा।
दरअसल युवा महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में जाने की अनुमति नहीं होती। कुछ लोगों का कहना है कि महिलाओं को इसलिए अनुमति नहीं है, क्योंकि मासिक धर्म के दौरान उन्हें अशुद्ध माना जाता है। हालांकि कुछ दूसरे विद्वानों का कहना है कि भगवान अयप्पा, जिन्हें यह मंदिर समर्पित है, को एक ब्रह्मचारी योगी माना जाता है और इसी वजह से मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है मगर ये सारे नियम बनाते समय इस तथ्य को भुला दिया गया कि ब्रह्मचारी भी जिस कोख से जन्मता है वह स्त्री की ही होती है और वह भी जिसे अशुद्ध बताते हैं उसी से  जन्मे हैं।
सबरीमाला मंदिर उसी ‘प्रगतिशील केरल’ में है स्थ‍ित है जहां बीफ पर प्रतिबंध को रूढ़‍िवादी कहा जाता है , जहां शत प्रतिशत साक्षरता है।
गोपालकृष्णन के इस बयान के बाद चंडीगढ़ की एक युवती निकिता आजाद ने गत 21 नवंबर को फ़ेसबुक पर ‘HappytoBleed’ पेज बनाया जिसमें उन्होंने महिलाओं से आग्रह किया है कि “वो ये चार्ट या सेनिटरी नैपकिन लेकर अपनी तस्वीर पोस्ट करें ताकि सदियों पुराने इस पितृसत्तात्मक समाज के शर्मिंदा करने वाले इस खेल का विरोध किया जा सके.”महिलाओं ने भी लिख दिया- Hey Mr Temple Chief, We Are Very #HappyToBleed#HappytoBleed
एक सप्ताह बाद भी 21 नवंबर से चलाए जा रहे इस कैंपेन को अभी तक लगातार हिट किया जा रहा है और इसकी अवध‍ि 4 दिसंबर तक है।
केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन देखने वाली संस्था त्रावणकोर देवाश्वम बोर्ड के एक अधिकारी के बयान को लेकर फेसबुक और ट्विटर पर जबरदस्त गुस्सा दिख रहा है, जहां सैकड़ों महिलाएं कह रही हैं कि उन्हें अपने शरीर पर गर्व है और ऐसा हो भी क्यों ना ।
ईश्वर की बनाई प्रकृति पर अंकुश लगाया जाना तो स्वयं ईश्वर का अपमान है, शरीर की प्रकृति को लेकर नियम-कानूनों को अब नई पीढ़ी मानने से इंकार कर रही है। यह संकेत है कि जो अभ‍ियान अभी फेसबुक और ट्विटर पर हैं उनके ज़मीन पर उतरने का समय आ गया है।
सबरीमाला देवाश्वम बोर्ड के प्रमुख प्रयार गोपालकृष्णन की इस टिप्पणी के खिलाफ ट्विटर और फेसबुक पर कमेंट की झड़ी लग गई,  पुरुष और महिलाएं #HappyToBleed हैशटैग के साथ कमेंट कर रहे हैं।
यह मुहिम 21 नवंबर से शुरू है, जिसमें महिलाएं अपने प्रोफाइल या कैंपेन पेज पर प्लेकार्ड या सैनेटरी नैपकिन के साथ तस्वीरें डाल रही हैं।
बहरहाल, चंडीगढ़ की निकिता आजाद की पहल से चला ये कैंपेन कुछ लोगों को बेवजह लग सकता है, कुछ इसे टाइम पास कह सकते हैं मगर ऐसी पहल अब हो चुकी है जहां माहवारी को टैबू की तरह देखने वाले इसे ना तो नज़रंदाज कर पायेंगे और ना ही इसे अपवित्रता का सिंबल बना पायेंगे।
सबसे अच्छी बात ये रही कि लड़कियां अब इस पर बात करते समय हिचकती नहीं हैं… अब वो सैनिटरी नैपकिन लेते समय इधर-उधर नहीं ताकतीं। सदियों से चली आ रही सामंती सोच को बदलने में वक्त लग सकता है मगर वक्त बदलने के निशां उसकी निरंतरता से लगाए जा सकते हैं।
इस संदर्भ में मुझे पत्रकार मनीषा पांडेय का कथन याद आता है कि जो इंडिया गेट पर निर्भया कांड के बाद बोली थीं
”औरत के इंसान बनने की राह में पुरुष की सामंती सोच अब भी सबसे बड़ी दीवार है।”

अलकनंदा सिंह

बुधवार, 18 नवंबर 2015

मदनी साहब का (अ) सहिष्णु मार्च

हमारे यहां कहावत है कि जो होता है अच्छे के लिए होता है... मदनी साहब ने कल क्या खूब कहा... मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कहना चाहूंगा कि मुसलमानों के लिए भारत से बेहतर कोई देश नहीं है... । और आज उनके  नेतृत्व में आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन किए जा रहे हैं।
हालांकि जमात-ए-उलेमा हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी के नेतृत्व में जमात-ए-उलेमा हिंद द्वारा आतंकवाद के खिलाफ किया जा रहा प्रदर्शन, पेरिस की खबरों के बीच कुछ दब सा गया है मगर जो प्रयास किया जा रहा है, यह काबिले तारीफ है।
उलेमा आगे आएं तो क्या मुसलमानों के नाम पर होने वाली राजनीतिक बयानबाजी और असहिष्णुता जैसी बातें अपना कॉकस बना पायेंगी ?
निश्‍चि‍त ही नहीं...
ये कोई इत्त‍िफाक नहीं हो सकता कि बिहार चुनाव से ठीक पहले तक असहिष्णुता की बात करने और अपने पुरस्कार लौटाने वाले कर्नाटक में हुई हिंसा पर चुप्पी साधे रहे।
हिंसा तो हुई ना, अंतर बस इतना था कि दादरी में मरने वाला मुसलमान था और कर्नाटक में मारा गया व्यक्ति हिंदू था।
बिहार चुनाव से ठीक पहले तक जिन नामचीन बुद्धिजीवियों ने 'मोदी सरकार' के ख‍िलाफ कथ‍ित तौर पर असहिष्णुता का झंडा उठा रखा था... उनके पुरस्कार वापसी अभ‍ियान को भी मदनी साहब ने कुछ इस तरह पलीता लगा दिया कि उन बेचारों के अवार्ड भी हाथ से गए और सहिष्णुता भी... क्योंक‍ि मदनी साहब जैसी जानी मानी इस्लामिक हस्ती ने मुसलमानों के लिए भारत को दुनिया का ''अव्वल देश'' बता दिया ... अब बुद्धिजीवियों की उस ''प्लांटेड इनटॉलरेंस'' का क्या होगा। उनके पास तो मदनी साहब के इस बयान की कोई काट भी नहीं है। उनकी इनटॉलरेंस की तो इस एक बयान ने धज्ज‍ियां ही उड़ा दीं।
दर्जन भर आयोगों के आने-जाने के बाद न्यायमूर्ति सच्चर कमेटी की आख‍िरी सिफारिशें मुसलमानों की स्थ‍ितियां संभाल पाई हों या न संभाल पाई हों मगर प्लांटेड इनटॉलरेंस के हौव्वे ने ये जरूर बता दिया कि इस देश में अगर मीडिया हाईप चाहिए तो मुसलमानों पर अत्याचार की बात कर दो।
क्या किसी ने इन बयानबाजों को सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर बात करते देखा है... या कितने एनजीओ हैं जो मुसलमान के वास्तविक हित, उनकी गरीबी, मुस्लिम महिलाओं की स्थ‍िति, अश‍िक्षा और जीवनस्तर के बदतर होने की बात करते हों।
कोई नहीं... क्योंकि इस सबकी बात करने से ना तो साहित्यकारों का ''नाम रोशन'' हो पाता और ना ही  कलाकारों को सुर्ख‍ियां मिल पातीं।
सच्चर रिपोर्ट भारतीय मुस्लिम समाज की आर्थिक, सामाजिक, तथा शैक्षिक परिस्थितियों का आईना है मगर किसी भी बुद्धिजीवी ने उसे लागू ना किये जाने पर आपत्त‍ि नहीं जताई। सच्चर समिति की रिपोर्ट के आने के इतने सालों बाद भी मुसलमानों के हालात में कोई बदलाव नहीं आया है।
 बहरहाल, मदनी साहब द्वारा आतंकवाद के ख‍िलाफ विरोध जताने और जंतर- मंतर सहित देश के सभी बड़े शहरों में प्रदर्शन करने से ना केवल उन युवकों पर असर पड़ेगा जो आईएस या किसी कट्टरवाद से प्रेरित हो सकते हैं बल्कि उन लोगों की भी दुकानें फीकी पड़ने की पूरी पूरी संभावना है जो गाहे-बगाहे आतंकवाद के नाम पर भारतीय मुसलमानों को विदेश‍ियों की तरह ट्रीट करते रहे हैं। 
हम तो हर बुराई में भी अच्छाई खोजने वाले देश के वाशिंदे हैं, अब देखि‍ए ना .... हमला पेरिस में आईएसआईएस आतंकवादियों ने किया और हमारे उलेमा स्वयं आगे आ गये आतंकवाद के विरोध में।
इतना ही नहीं, उनके इस बड़े कदम ने छद्म असहिष्णुतावादियों का सच भी उजागर कर दिया। 
एक ऐसा सच जो किसी "हिन्दू" के लाख प्रयास भी सामने नहीं ला पाते क्योंक‍ि उसकी सहि‍ष्णुता को भी विरोधी चश्मे से देखने का रिवाज बन गया है। तभी तो खुलेआम विभिन्न मीडिया मंचों पर आकर मोदी सरकार को गरियाने के बावजूद असहि‍ष्णुता का ढोल पीटा जाता रहा क्योंक‍ि असहि‍ष्णुता की कांग्रेसी परिभाषा ऐसी ही है।
खैर... असहि‍ष्णुता को लेकर मुस्लि‍मों की परि‍भाषा मदनी साहब ने बता ही दी है।
क्या अब कोई कांग्रेसी उन्हें जवाब देने सामने आयेगा?

- अलकनंदा सिंह    


मंगलवार, 3 नवंबर 2015

राम का जन्म अयोध्या में नहीं, डेरा इस्माइल खान में हुआ

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के सीनियर मेंबर अब्दुल रहीम कुरैशी ने अपनी किताब में भगवान राम के जन्म के बारे में नया दावा किया है।कुरैशी ने ‘फैक्ट्स ऑफ अयोध्या एपिसोड (मिथ ऑफ राम जन्मभूमि)’ टाइटल से किताब लिखी है। इसमें उन्होंने लिखा है कि भगवान राम का जन्म भारत के अयोध्या में नहीं, बल्कि डेरा इस्माइल खान में हुआ था जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान में है।
क्या है किताब का मकसद?
कुरैशी के मुताबिक वे इस किताब के जरिए राम जन्मभूमि विवाद पर जागरूकता लाने की कोशिश करेंगे। उनका कहना है कि वे अपने रिसर्च को शेयर करने के लिए हिंदू नेताओं से भी मुलाकात करेंगे। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में चल रहे बाबरी मस्जिद केस में AIMPLB भी एक पक्ष है। कुरैशी बोर्ड के असिस्टेंट जनरल सेक्रेटरी और स्पोक्सपर्सन हैं।
क्या दावे किए गए हैं किताब में?
* भगवान राम का जन्म डेरा इस्माइल खान में हुआ।
* यह क्षेत्र पुराने नॉर्थ-वेस्ट इंडिया का हिस्सा था। आजादी और बंटवारे के बाद यह पाकिस्तान में है।
* वहां आज भी एक स्थान का नाम रहमान देहरी है। इसे पहले राम देहरी कहा जाता था।
* किताब के मुताबिक वेद-पुराण में गंगा के मैदानी इलाके में कहीं भी राम के जन्म या उनके साम्राज्य का जिक्र नहीं है।
* राम जन्मभूमि विवाद अंग्रेजों की वजह से पैदा हुआ।
* राम के साम्राज्‍य की पहचान ‘सप्‍त सिंधु’ के जरिए की गई है। यह क्षेत्र अभी के हरियाणा-पंजाब से लेकर पाकिस्‍तान और पूर्वी अफगानिस्‍तान तक फैला हुआ है।
किताब के मुताबिक कब जन्मे थे राम?
* किताब में लिखा गया है कि हिंदू धर्म में युगों की जो मान्यता है, उसके मुताबिक श्रीराम का जन्म 24वें या 28वें त्रेता युग में माना जाता है। यानी यह वक्त करीब 1.8 करोड़ साल पहले का है। दुनियाभर में कहीं भी इतने पुराने युग के कोई अवशेष नहीं हैं।
* वहीं, रामायण में लिखी गई जगहों के मुताबिक राम का जन्म 5561 ईसा पूर्व से 7323 ईसा पूर्व से बीच का माना जाता है। लेकिन यूपी के अयोध्या और आसपास के इलाकों में 600 ईसा पूर्व से पहले के कोई सबूत नहीं मिलते।
बाबरी मस्जिद के बारे में लेखक का क्या दावा है?
* कुरैशी ने कहा- राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाए जाने की कहानी अंग्रेजों ने गढ़ी थी। अंग्रेज हिंदू-मुस्लिमों के बीच दरार लाना चाहते थे।
* गोस्वामी तुलसीदासजी ने अयोध्या में रामचरितमानस लिखी थी। उन्हीं के सामने मस्जिद थी। लेकिन उन्होंने इस बात का जिक्र नहीं किया कि राम मंदिर के अवशेषों पर मस्जिद बनाई गई है।
* इस किताब के लेखक कुरैशी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक और मेंबर कमाल फारूकी ने दावा किया कि इनमें से कुछ तथ्य तो कोर्ट के सामने भी पेश किए जा चुके हैं। हम कोर्ट के आदेश से परे नहीं जा रहे लेकिन हम चाहते हैं कि सच सामने आए। यह मुद्दा राजनीति का नहीं है। यह मुद्दा धर्म और आस्था का है।
क्या है विवाद?
अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद 1949 से चल रहा है। इसमें 7 पक्ष हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को इस मामले में अपना फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने विवादित स्थल को भगवान राम का जन्मस्थल बताया था। विवादित जगह का दो-तिहाई हिस्सा हिंदुओं और एक-तिहाई हिस्सा मुस्लिमों को देने को कहा था। लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। मामला अभी भी पेंडिंग है।