सोमवार, 8 जून 2015

बहती गंगा है हाथ धोने से भी बाज आयें क्या...?

कहते हैं कि स्वस्थ शरीर में में स्वस्थ दिमाग बसता है और स्वस्थ दिमाग से स्वस्थ चरित्र की स्थापना की होती है जिससे स्वस्थ समाज का निर्माण होता है और स्वस्थ रहने के लिए किसी भी धर्म व संप्रदाय में कोई बंदिशें नहीं लगाई गईं। फ‍िर क्यों योग दिवस मनाने को लेकर इतनी खींचातानी हो रही है। 21 जून को यदि देश अपनी इस थाती को दुनिया के सामने प्रदर्श‍ित करके जीवन के लिए अमूल्य निध‍ि 'स्वास्थ्य' के प्रति अपनी गंभीरता को प्रगट करता है या इसके जरिये राष्ट्रवाद का संदेश देता है तो उसमें गलत क्या है।
खुद को हेय दृष्ट‍ि से देखकर महान नहीं  बना जा सकता। तथाकथ‍ित समाजवाद के नाम पर भारतीय जनमानस में जो अभी तक यह धारणा बैठा दी गई कि यदि हम अपने प्राचीन महात्म्य की बात कर रहे हैं तो वह हिंदूवादी है या फ‍िर पुरातन पंथी, इस ग्रंथ‍ि से निकलना होगा। इस ग्रंथ‍ि से निकलने की कोश‍िश ही तो है कि अाज योग सिर्फ भारत का ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजि‍त होने जा रहा है।  
जनसांख्यिकी आंकड़ों के अनुसार इस समय देश में युवाओं का प्रतिशत ज्यादा है और युवाओं के कंधे पर चढ़कर हम अगली सदी में देश को सर्वोच्च स्थान तक ले जाने की कामना करते हैं। ऐसे में उनके कंधों को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी किसकी है। क्या शारीरिक, मानसिक व चारित्रिक रूप से अस्वस्थ और न‍िर्बल पीढ़ी के सहारे हम देश को आगे ले जाने का स्वप्न पाल रहे हैं।
भारत जैसे युवा देश को अच्छे स्वास्थ्य के ओर ले जाना पूरे के पूरे समाज को स्वस्थ बनाना है। कुछ वर्षों पहले तक योग को लगभग भुला दिया गया था। सुबह की सैर व प्राणायाम  से लेकर व्यायाम और अखाड़ों की ओर जाने वाले युवाओं को पिछड़ा समझा जाने लगा। बाबा रामदेव के प्रात: कालीन टीवी ने  सामूहिक रूप से यदि योग को इतनी व्यापकता में लोगों तक न पहुंचाया होता तो आज भी हम योग के सामान्य से लाभों से भी अपरिचित ही होते। यह अलग बात है कि बाबा रामदेव की बात करते ही लोग उनकी व्यापारिक गत‍िविधि‍यों पर बात करने लगते हैं और उनके मूल प्रयासों को भूल जाते हैं। ऐसा नहीं था कि बाबा रामदेव से पहले योग देश में किया नहीं जा रहा था मगर उसे आमजन तक लाने का श्रेय तो बाबा को ही जाता है।
योग सिर्फ शरीर का ही नहीं मन का भी व्यायाम है और मन चाहे हिंदू का हो या मुसलमान का, स्वस्थ रहने का अधिकार तो हर व्यक्ति का है। कुछ लोगों द्वारा बवाल मचाया जा रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर सूर्यासन करने की इजाज़त उनका धर्म नहीं देता। न जाने कहां कहां से अज़ान, वजू और आयतों के उदाहरण दिये जा रहे हैं कि अल्लाह के अलावा हम किसी के आगे सर नहीं  झुकाते जबकि सूर्य नमस्कार में पहला आसन ही सूर्य के सामने सज़दा करना है।
अगर धार्मिक दृष्टि से कहा जाये तो कोई ज़रा इन लकीर के फकीरों से पूछे कि जब सारी कायनात के ज़र्रे ज़र्रे में अल्लाह है तो सूर्य क्या उस कायनात का हिस्सा नहीं है । और यदि सामाजिक दृष्टि से देखें तो जो आज सूर्य नमस्कार को धर्म पर हमले के रूप में देख रहे हैं, वे यह भी तो बतायें कि स्वयं उन्होंने कुरान के नाम पर पूरे समाज की अस्वस्थता और मानसिक पिछड़ेपन के लिए क्या क्या कर दिया ... । क्या उन्होंने इस्लाम को इतना कमजोर और लाचार समझ रखा है जो एक स्वस्थ राष्ट्र की परिकल्पना में वह सबके साथ नहीं आ सकता। ये लोग सज़दे की बात कहकर बस विरोध करने के लिए विरोध कर रहे हैं, क्योंकि ये अच्छी तरह जानते हैं कि इसी तरह वे लाइमलाइट में आ सकते हैं, मीडिया में छा सकते हैं, इलेक्ट्रॉनिक चैनलों को बाइट दे सकते हैं, सारी जिंदगी निकल गई जिनकी गली मोहल्लों में, वे भला क्योंकर ये मौका चूकें, बहती गंगा है हाथ धोने से भी बाज आयें ...?
पूरे विश्व में इस्लाम के नाम पर अपनी घ‍िनौनी हरकतों से जिस आईएस ने पूरे धर्म को संदेह के घेरे में ला दिया है, उस पर यही ठेकेदार कुछ कभी नहीं बोलते जबकि अपने बच्चों से स्वस्थ रहने का एक आसान सा तरीका भी इनसे बर्दाश्त नहीं हो रहा। इस्लाम की आख‍िर इतनी अलग-अलग सी परिभाषाएं क्यों हैं। निश्चित ही धर्म के नाम पर और विरोध के हथकंडों से ये उस पूरी युवा पीढ़ी के सामने ऐसे उदाहरण रख रहे हैं जो उन्हें राष्ट्र के साथ खड़ा होने से वंचित करेगा।
यह  सब भी तब हो रहा है जब ईरान और अफगानिस्तान व इंडोनेशिया जैसे खालिस मुस्लिम देशों में योग को राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया जा रहा है। इस्लाम के भारतीय अलम्बरदार क्या अब ये बताने की जहमत उठायेंगे कि आख‍िर उक्त तीनों देश इस्लाम और इबादत की जो नाफरमानी कर रहे हैं, उनके लिए इनके पास क्या उपदेश हैं?
चूंकि ये सरकार बीजेपी की है तो सरकार के हर कदम पर उन्हें विरोध का अवसर मिल रहा है और अपनी तवज्जो को कैश करने का मौका भी वरना पिछली सरकारों में कोई मुद्दा ही कहां था मीडिया में छाने का... ।
बहरहाल,  योग के ज़रिये पूरे विश्व के स्वास्थ की कामना एक वृहद सोच वाला देश ही कर सकता है और जो लोग इसमें अपने अपने अड़ंगे लगा रहे हैं, वो देश के साथ साथ देशवासियों और खासकर अपनी युवा पीढ़ी को संस्कारों व उनके अच्छे स्वास्थ से वंचित रखना चाहते हैं, इसके अलावा और कुछ नहीं ।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है क‍ि ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे कि वे राष्ट्र के लिए सोच सकें क्योकि इन्हें ही सबसे ज्यादा जरूरत है प्रणायाम की और सकारात्मक सोच की भी। 
- अलकनंदा सिंह

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