शनिवार, 27 दिसंबर 2014

वैदिक युग में थे रिवर्स गेयर वाले विमान

वैदिक युग में भारत में ऐसे विमान थे जिनमें रिवर्स गियर था यानी वे उलटे भी उड़ सकते थे। इतना ही नहीं, वे दूसरे ग्रहों पर भी जा सकते थे। सच है या नहीं, कौन जाने। अब एक जाना-माना वैज्ञानिक इंडियन साइंस कांग्रेस जैसे प्रतिष्ठित कार्यक्रम में भाषण के दौरान ऐसी बातें कहेगा तो आप क्या कर सकते हैं!
3 जनवरी से मुंबई में इंडियन साइंस कांग्रेस शुरू हो रही है जिसमें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित दो वैज्ञानिकों समेत दुनियाभर के बुद्धिजीवी हिस्सा लेंगे। इन्हीं में एक होंगे कैप्टन आनंद जे बोडास जो मानते हैं कि 'आधुनिक विज्ञान दरअसल विज्ञान ही नहीं' है।
मुंबई मिरर अखबार को बोडास ने बताया कि जो चीजें आधुनिक विज्ञान को समझ नहीं आतीं, यह उसका अस्तित्व ही नकार देता है। बोडास कहते हैं, 'वैदिक बल्कि प्राचीन भारतीय परिभाषा के अनुसार विमान एक ऐसा वाहन था, जो वायु में एक देश से दूसरे देश तक, एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक और एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जा सकता था। उन दिनों विमान विशालकाय होते थे। वे आज के विमानों जैसे एक सीध में चलने वाले नहीं थे, बल्कि दाएं-बाएं और यहां तक कि रिवर्स भी उड़ सकते थे।'
कैप्टन बोडास 'प्राचीन भारतीय वैमानिकी तकनीक' विषय पर बोलेंगे। वह केरल में एक पायलट ट्रेनिंग सेंटर के प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए हैं। उनके साथ इस विषय पर एक और वक्ता होंगे जो स्वामी विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल में एक लेक्चरर हैं।
कैप्टन बोडास भारतवर्ष में हजारों साल पहले हासिल की गईं जिन तकनीकी उपलब्धियों का दावा करते हैं, उनका स्रोत वह वैमानिका प्रक्रणम नामक एक ग्रंथ को बताते हैं, जो उनके मुताबिक ऋषि भारद्वाज ने लिखा था। वह कहते हैं, 'इस ग्रंथ में जो 500 दिशा-निर्देश बताए गए थे उनमें से अब 100-200 ही बचे हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बहुत वक्त गुजर गया, फिर विदेशियों ने हम पर राज किया और देश की बहुत सी चीजें चुरा ली गईं।'

वह कहती हैं, 'ऐसा पहली बार हो रहा है जब भारतीय विज्ञान कांग्रेस में एक सत्र में संस्कृत साहित्य के नजरिए से भारतीय विज्ञान को देखने की कोशिश होगी। इस साहित्य में वैमानिकी, विमान बनाने की जानकारी, पायलटों के पहनावे, खाने-पीने और यहां तक कि सात तरह ईंधन की भी बात है। अगर हम इन चीजों के बारे में बोलने के लिए संस्कृत के विद्वानों को बुलाते तो लोग हमें खारिज कर देते लेकिन कैप्टन बोडास और उनके साथी वक्ता अमीय जाधव संस्कृत में एमए के साथ-साथ एमटेक भी कर चुके हैं।'
वैसे, इस भारतीय विज्ञान कांग्रेस में इस विषय पर चर्चा का कई जाने-माने वैज्ञानिक समर्थन कर रहे हैं, जिनमें आईआईटी बेंगलुरु में एयरोस्पेस इंजिनियरिंग के प्रफेसर डॉ. एस. डी. शर्मा भी शामिल हैं।
इंडियन साइंस कांग्रेस में यह विषय इसलिए रखा गया है ताकि 'संस्कृत साहित्य के नजरिए से भारतीय विज्ञान को देखा जा सके'। इस विषय पर होने वाले कार्यक्रम में संचालक की भूमिका मुंबई यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग की अध्यक्ष प्रफेसर गौरी माहूलीकर निभाएंगी। वह कैप्टन बोडास की बात को सही ठहराने की कोशिश करती हैं।
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According to Maharshi Dayananda Saraswati’s commentary (first published in 1878 or earlier), there are references to aircraft in the Vedic mantras:

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....going from one island to another with these crafts in three days and nights....and

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Just an intelligent people constructed ships to cross oceans.....jumping into space speedily with a craft using fire and water.....containing 12 stamghas (pillars), one wheel, three
machines, 300 pivots, and 60 instruments.

बुधवार, 17 दिसंबर 2014

असम का तोलिनी ब्‍याह...एक संस्‍कार

असम के बोगांइगांव ज़िले के सोलमारी में एक अनोखी शादी हो रही है. अनोखी इस मायने में कि असम की परंपरा के अनुसार यहां दुल्हन तो होती है लेकिन दूल्हा एक केले का पौधा है. ये मौक़ा है तोलिनी ब्याह का. ये वो मौका होता है जब बेटी बचपन की उम्र पार कर किशोरावस्था में चली जाती है. ये तब मनाया जाता है जब पहली बार किसी लड़की को महावारी होती है. असम के सोलमारी गांव के ओनियो रॉय के घर उसी की तैयारी चल रही है और सब की नज़र उनकी बेटी गीतूमनी पर है जिसका नवोई तोलिनी ब्याह है.
बाहर शोर गुल है, गाना बजाना है तो 13 साल की गीतूमनी रॉय एक कमरे में ज़मीन पर चुपचाप बैठी है. तीन दिन बाद वो स्नान करेगी और कपड़े बदलेगी. उसे दुल्हन की तरह सजाया जाएगा. गीतूमनी की मां भखंत रॉय का कहना था कि ऐसा अवसर उनके जीवन में भी आया था. लेकिन पहले उत्सव के साथ-साथ पाबंदियां भी ज़्यादा थीं.
वे कहती हैं, ''मुझे पहले दिन तो केवल पानी दिया गया गया था, ज़मीन पर सुलाया गया और उन दिनों में खुद खाना पकाना पड़ता था. काफी छुआछूत होती थी, काफ़ी एहतियात बरतना पड़ता था लेकिन मैं अपनी बेटी के साथ ऐसा नहीं कर सकती. वो स्कूल जाती है तो कैसे खाना पकाएगी. अगर मैं उसे हमेशा महावारी के दौरान नीचे सुलाउंगी तो उसे दुख होगा. मैं अपनी बेटी का साथ दूंगी.''
तोलिनी ब्याह की शुरुआत होती है लड़की की पहली माहवारी के पहले दिन से. उसे सूर्य की रोशनी से बचाया जाता है. महावारी के दौरान खाने के लिए फल, कच्चा दूध और पीठा दिया जाता है. वो पका हुआ खाना नहीं खा सकती. उसे ज़मीन पर सोना होता है और जब तक रस्म पूरी नहीं हो जाती, कोई पुरुष लड़की का चेहरा नहीं देख सकता.
गीतूमनी के पिता ओनियो रॉय कहते हैं, ''मैं खुश हूँ लेकिन मेरी बेटी ने तीन दिन से कुछ नहीं खाया. मैं कैसे खा सकता हूं. तीन दिन से वो इस सर्दी में ज़मीन पर सो रही है, माना नियम तो नियम होता है लेकिन दुख भी होता है. लेकिन एक तसल्ली है कि उसे महावारी हो गई. नहीं होती तो हम तनाव में आ जाते. अब मेरी बेटी बड़ी हो गई है.''
इस बीच परंपरा के मुताबिक गीतूमनी को उसकी मामी कंधे पर लादकर नहलाने ले गईं. इस रस्म के दौरान केवल महिला और लड़कियां शामिल होती हैं. इसके बाद, आंगन में गीतूमनी के सोने और चांदी के जेवर पहनाए गए, पेरौं में पायल और फिर पारंपरिक मेखला चादर पहनाई गई.
गीतूमनी का दुल्हन की तरह श्रृंगार करने के बाद उसकी मांग में सिंदूर भरा गया. उसने आंगन में केले के पत्तों पर रखी पूजा सामग्री के सामने प्रणाम किया. हालांकि दूल्हा बना केले का पेड़ यहां नहीं होता. शादी के बाद पूजा सामग्री में से तांबुल, पान का पत्ता पारंपरिक गमछे में बांधा जाता है और इसे बच्चा समझकर उत्सव में शामिल महिलाओं को खेलने के लिए दिया जाता है.
ये इस बात को दर्शाता है कि लड़की शादी के लायक है और मां बन सकती है.
गीतूमनी कक्षा आठ में पढ़ती है. वे कहती हैं, ''अच्छा लग रहा है और मैं जानती हूं कि रीति रिवाज़ के अनुसार मुझे खाना नहीं दिया जा रहा वो सब ठीक है लेकिन मैं ज़मीन पर नहीं सोउंगी.''
उधर 60 साल की पूर्णिमा सिंहो अपनी बेटी का कई साल पहले तोलिनी ब्याह कर चुकी है.
उनका कहना था, ''मेरी बेटी का तोलिनी ब्याह में 30 हज़ार रुपए का ख़र्च आया था. मैंने उसे सोने के गहने भी दिए थे. ये हमारे लिए खुशी मनाने का मौका होता है क्योंकि अगर बच्चा भाग कर शादी कर ले तो कम से कम दिल का अरमान तो अधूरा नहीं रहता.''
ये उत्सव लड़की के सयाने होने पर किया जाता है हालांकि हर इलाके के रीति रिवाज़ो में थोड़ा बहुत अंतर होता है. असम में माना जाता है कि पहले निचली जाति के लोग ही अपनी बेटी की पहली महावारी के बाद इस तरह का जश्न मनाते थे लेकिन अब देखा देखी समाज का हर वर्ग इसे मनाने लगा है.
तेजपुर यूनिवर्सिटी में कल्चरल स्टडीज़ में सहायक प्रोफ़ेसर मंदाकिनी बरुआ पुबर्टी राइट्स पर शोध पत्र भी लिख रही हैं. वे बताती हैं, "पहले ब्राह्मण समाज में इसे छिप कर मनाया जाता था क्योंकि वहां ये रिवाज़ था कि महावारी से पहले लड़की की शादी हो जानी चाहिए लेकिन अब असमिया समाज के हर तबके में इसे मनाया जाने लगा है."
वे कहती हैं, "तोलिनी ब्याह का मसकद दरअसल समाज या लड़के वालों को ये बताना होता है कि उनकी लड़की शादी के लिए तैयार हो गई. यहां बिहू उत्सव के दौरान अगर लड़का लड़की एक दूसरे को पसंद कर लेते है तो भाग कर शादी कर लेते हैं. क्योंकि उन्हें डर रहता है कि शायद मां-पिता इससे राज़ी न हो. ऐसे में इसी ब्याह में लड़की के माता-पिता अपनी इच्छाएं पूरी करते है. साथ ही इस बात की खुशी ज़ाहिर की जाती है कि अब वो मां बन सकती है.''
मंदाकिनी बरुआ ये भी बताती हैं कि लड़की को जेवर देकर ये अहसास भी दिलाया जाता है अब वो सयानी हो गई.
उत्तर भारत में जहां अब भी इस विषय पर खुलकर बात नहीं की जाती वहीं असम, तमिलाडु और आंध्र प्रदेश के कुछ इलाक़ों में लड़की की पहली महावारी को शादी की तरह मनाया जाता है.
-सुशीला सिंह

सोमवार, 15 दिसंबर 2014

6 दिसंबर की शाम: ‘पॉपकॉर्न विद परसाई’

मुंबई में एनसीपीए थिएटर फ़ेस्टिवल सेंटरस्टेज में बीते 6 दिसंबर की शाम व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के नाम रही. मनोज शाह निर्देशित नाटक ‘पॉपकॉर्न विद परसाई’ ने हरिशंकर परसाई को ही जैसे मंच पर ला खड़ा कर दिया.
पॉपकॉर्न की चर्चा कुछ इस तरह चली कि दर्शकों ने नाटक के ज़रिए साहित्य ही नहीं, बल्कि साहित्यकार को भी जाना. चरित्र अभिनेता दया शंकर पांडे ने नाटक में लीड किरदार बख़ूबी निभाया.
नाटक का संगीत, मंच सज्जा, रघुवीर यादव की आवाज़ में मक्के का गीत और परसाई का व्यंग्य इस शाम की पहचान बना.
कटाक्ष
एक घंटे से भी ज़्यादा समय चले इस अवधी नाटक में परसाई का पात्र निभाते दया शंकर पांडे तत्कालीन साहित्यकारों पर कटाक्ष करते हैं तो फ़िल्मी दुनिया की चकाचौंध के पीछे का अंधेरा भी परसाई की अदा में दर्शकों को बताया जाता है.
पिछले कुछ समय से सोलो एक्ट वाले नाटकों का चलन कुछ बढ़ा है.
मनोज शाह इस प्रकार के नाटक पहले भी दर्शकों के सामने रख चुके हैं जहां एक ही अभिनेता पात्र बन अपनी कहानी बताता है.
गुजराती भाषा के लेखक चंद्रकांत बक्शी के पात्र में अभिनेता प्रतीक गांधी को ले कर बनाया गया नाटक ‘हुं चंद्रकांत बक्शी’, कार्ल मार्क्स की कथनी उन्हीं की ज़बानी बताता, सतचित पुराणिक की केंद्रीय भूमिका वाला नाटक ‘कार्ल मार्क्स इन कालबादेवी’ ऐसे ही कुछ प्रयोगो में से एक है.
लोकप्रियता की वजह
ऐसे नाटकों की सफलता के पीछे कई कारण हैं.
जब एक ही अभिनेता पूरे नाटक का भार अपने कंधो पर ले कर चलता है तब वह नाटक में अपनी तरफ़ से पूरी ज़िम्मेदारी निभाते हुए भी एक अलग ही प्रकार की स्वतंत्रता से मंच का इस्तेमाल करता है.
हालांकि निर्देशक की सूचना तो अभिनेता को मन में रखनी ही होती है फिर भी वह पात्र को आत्मसात करने के बाद अपनी समझ को अभिनय में ढाल सकता है.
मुश्किल है ये कला
एक घंटे से ज़्यादा समय तक दर्शकों को अभिनय और वाणी प्रवाह से पकड़े रखना बहुत बड़ी चुनौती है.
इस के साथ ही ढेर सारी लाइनें याद रखना, जिस किरदार को निभाना है उसके इतने क़रीब होना कि दर्शक मानने लगे कि अभिनेता और वह पात्र जैसे एक ही है.
मुंबई की रंगभूमि सोलो एक्ट जैसे कुछ प्रोडक्शन्स दर्शकों के समक्ष सफलतापूर्वक रख चुकी है.
हालांकि ये चलन कितना दीर्घकालीन होता है ये देखना बाक़ी है.
-चिरंतना भट्ट

बुधवार, 10 दिसंबर 2014

कल से राष्ट्रपति भवन के कलात्मक खजाने को देख‍िए ऑनलाइन

नई दिल्ली। 
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 11 दिसंबर को "राष्ट्रपति भवन की कला विरासत- एक चयन" शीर्षक से एक इलेक्ट्रॉनिक आर्ट कैटलॉग का विमोचन वेबसाइट प्रेसिडेंटऑफइंडियाडॉटएनआईसीडॉटइन
    ( http://presidentofindia.nic.in/  ) पर करेंगे। राष्ट्रपति भवन पहली बार भवन का संपूर्ण कला संग्रह विश्व के लोगों के लिए खोल रहा है। इस कैटलॉग में राष्ट्रपति भवन की 113 उच्च गुणवत्ता वाली पेंटिंग के फोटोग्राफ्स और चुनी हुई कला वस्तुओं का संग्रह होगा। भारत और विदेश के कुछ ही लोग जानते हैं कि राष्ट्रपति भवन में कला का समृद्ध संग्रह है। राष्ट्रपति भवन में आने वाले पूरे संग्रह का कुछ ही हिस्सा देख पाते हैं।
इसके अलावा पेंटिंग के स्थान, प्रकाश व्यवस्था और दर्शकों से इसकी दूरी आदि के कारण सामान्य दर्शक को इसका अध्ययन करने और पेंटिंग की पूरी सराहना करने में परेशानी होती है। इससे दर्शक पेंटिंग को बडा और जूम-इन करके कला की बारिकियां देख सकेंगे जो नंगी आंखों से नहीं देखी जा सकती हैं।
राष्ट्रपति भवन की विज्ञçप्त के अनुसार, कैटलॉग उपयोगकर्ता के अनुकूल है और इसे फोटो एलबम की तरह डिजाइन किया गया है जिसमें पेंटिंग्स की फोटो बाएं पन्ने पर और जानकारी, कलाकार की पृष्ठभूमि और पेंटिंग का विषय दाहिने पन्ने पर है। दर्शक, श्रेणी या स्थान के जरिये कैटलॉग को ब्राउज कर सकते हैं। ई-आर्ट कैटलॉग का अनुसंधान और संकलन राष्ट्रपति के प्रेस सचिव वेणु राजमणि ने नेशनल गैलरी ऑफ मॉर्डन आर्ट की अनुसंधान सहायक संग्राहक रूचि कुमार की सहायता से किया है।

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

कोई भी मुसलमान मंगोलों को कभी माफ नहीं कर सकता

वाराणसी। 
अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि विवाद को लेकर चल रहे मुकदमे के वादी हाशिम अंसारी का आगे पैरवी न करने की घोषणा के बाद बनारस में मुस्लिम महिलाओं ने नई पहल की है। मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की दर्जनों महिलाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय कार्यालय जाकर अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण कराने की अपील की है। मुस्लिम महिला फाउण्डेशन ने बाबरी मस्जिद के पैरोकार हाशिम अंसारी के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि रामलला को आजाद कराने का बयान देकर हाशिम ने मुसलमानों की इज्जत बढ़ाई है।
मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की सदर नाजनीन अंसारी के नेतृत्व में कई मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय जाकर अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए पत्रक दिया। इसकी कॉपी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, आरएसएस के पदाधिकारी इंद्रेश कुमार और विहिप के अशोक सिंघल को भी भेजी गई है।
मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की ओर से मोदी को भेजे गए खत में कहा गया है, 'बाबर विदेशी और मंगोल आक्रमणकारी था। यह चंगेज खां और हलाकू जैसे मंगोलों का वंशज था जिन मंगोलो ने दुनिया के कई शहर उजाड़़ दिए, लाखों लोगों का कत्ल किया। बाबर के पूर्वज हलाकू ने बगदाद पर आक्रमण कर 40 हजार मुसलमानों के साथ साथ पैगम्बर द्वारा नियुक्त इस्लाम के सर्वोच्च धर्मगुरु खलीफा की भी हत्या कर दी थी। इसी हलाकू की वजह से आज दुनिया में इस्लाम का कोई खलीफा नहीं है।'
पत्रक में आगे लिखा है, 'कोई भी मुसलमान मंगोलों को कभी माफ नहीं कर सकता। इन्हीं मंगोलों के वंशज बाबर ने 1528 में राम मंदिर तोड़कर हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत का बीज बोया। मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की सदर ने कहा कि मुसलमानों की इज्जत तभी बढ़ेगी जब वे श्री राम के पक्ष में रहेंगे। जो लोग मंदिर निर्माण के विरोधी हैं वे मुसलमानों को हमेशा गरीब और पिछड़ा बनाए रखना चाहते हैं।'
नरेंद्र मोदी के संसदीय कार्यालय में ज्ञापन देने वालों में भारतीय अवाम पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष नजमा परवीन, हिंदुस्तानी अंसारी महासभा के अध्यक्ष रेयाजुद्ददीन अंसारी, मोहम्मद नुसरतुल्लाह, मोहम्मद अजहरुद्दीदन, नसीम अख्तर, सीमा बानो, बिलकिस बेगम, हाजरा बेगम, कहकशा अंजुम, शबाना बानो सहित कई दूसरे लोग भी शामिल थे। मुस्लिम महिला फाउण्डेशन ने अयोध्या जाकर हाशिम अंसारी से जल्द मुलाकात कर रामलला को आजाद करने की लड़ाई तेज करने की भी बात कही है।   
-एजेंसी