मंगलवार, 7 अक्तूबर 2014

रूह तक जाने वाली आवाज को श्रद्धांजलि

रूह तक उतर जाये, ऐसा संगीत और एक सदी बाद भी कोई उतना ही शिद्दत से याद किया जाये तो मन बेहद भर-भर आता है। केंद्र सरकार ने आज संगीत की एक स्‍तंभ और महान गायिका मल्लिका-ए-ग़ज़ल बेगम अख्त़र की याद में दो स्मारक सिक्के जारी किए। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्रीपद नाइक ने बेगम अख्त़र की जन्मशती के मौके पर राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार, जनपथ से 100 रुपए और 5 रुपए के स्‍मारक सिक्‍के जारी करने के साथ ही बेगम अख्‍़तर का जन्‍मसदी समारोह शुरू हो गया।
इस मौके पर दादरा गायि‍का डॉ. रीता गांगुली और ठुमरी गायक श्री शशांक शेखर तथा गज़ल गायि‍का श्रीमती प्रभाती मुखर्जी ने प्रभावशाली कार्यक्रम पेश कि‍ए।
कभी बहज़ाद लखनवी की ग़ज़ल
''दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे...
वरना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे...
ऐ देखने वालों, मुझे हंस हंस के न देखो...
तुमको भी मोहब्बत कहीं मुझ सा न बना दे..." से गायिकी का सफर शुरू करने वाली मात्र 11 साल की बच्‍ची अख्‍तर बाई फैजाबादी को हम बेगम अख्‍तर नाम से जानते हैं।
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में 07 अक्टूबर 1914 में जन्‍मी अख्‍़तरी गज़ल, दादरा और ठुमरी गायि‍का थीं। उन्‍हें गायि‍का के रूप में संगीत नाटक अकादमी पुरस्‍कार प्रदान कि‍ए गए और मरणोपरांत भारत सरकार ने उन्‍हें पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्‍मानि‍त कि‍या। उन्‍हें मल्‍लि‍का-ए-गज़ल का खि‍ताब भी प्रदान कि‍या गया।
बेगम अख्‍़तर को इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्‍या होगी कि नई पीढ़ी को उनकी विरासत से परिचित कराये जाने का प्रयास किया जा रहा है।
इस प्रति‍भाशाली गायि‍का के 100 वर्ष की होने पर भारत सरकार ने इस मौके को यादगार बनाने का फैसला कि‍या। इस उद्देश्‍य से एक राष्‍ट्रीय समि‍ति‍ गठि‍त की गई है जि‍सके अध्‍यक्ष केन्‍द्रीय संस्‍कृति‍ मंत्री हैं। यह समि‍ति‍ वर्ष भर मनाए जाने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करेगी।
बेगम अख्‍तर के सम्‍मान में दि‍ल्‍ली, लखनऊ, हैदराबाद, भोपाल और कोलकाता में कार्यक्रम आयोजि‍त कि‍ए जाएंगे। उनकी कृति‍यों के वेब-पोर्टल, डीज़ि‍टाइज़ेशन/ डॉक्‍यूमेंटेशन इत्‍यादि‍ तैयार कि‍ए जाएंगे और प्रदर्शनि‍यां, प्रकाशन, वि‍चार गोष्‍ठि‍यों का आयोजन कि‍या जाएगा तथा युवा कलाकारों को छात्रवृत्‍त‍ियां‍ दी जाएंगी।
अक्टूबर में जन्‍मी बेगम साहिबा 1974 में अक्तूबर के ही आखिरी दिन इस दुनिया को अलविदा कह गई।अजब इत्‍तिफाक था कि अपनी मौत से सात दिन पहले बेगम अख्तर ने कैफी  आज़मी की गजल...
''सुना करो मेरी जान उनसे उनके अफसाने, सब अजनबी है यहां कौन किसको पहचाने।''  गाकर मानो यह बता दिया था कि अब बस चंद सांसें ही और हैं इस सफर में बाकी....
बहरहाल परदे के पीछे चले गये गजल गायिकी के इस दौर में जब रीमिक्‍स और रैप-पॉप का माहौल गर्म है तब बेगम अख्‍़तर को दी जाने वाली श्रद्धांजलि सचमुच नई पीढ़ी को उसकी रूह तक जाने वाले सुरों से अवगत कराने की कोशिश तो है ही।
- अलकनंदा सिंह

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