गुरुवार, 7 मार्च 2024

कोर्ट के फैसले से छ‍िड़ी नई बहस: हिंदू मैरिज एक्ट में क्यों है सप‍िंड व‍िवाह की मनाही

हिंदू विवाह कानून के तहत सपिंड संबंध निषिद्ध हैं । सपिंड वह व्यक्ति है जो परिवार में आपकी माता की ओर से आपके ऊपर तीन पीढ़ियों के भीतर कोई सामान्य पूर्वज रिश्तेदार हो,परिवार में आपके पिता की ओर से आपके ऊपर पांच पीढ़ियों के भीतर कोई समान पूर्वज रिश्तेदार हो।

देश में संविधान बनने के बाद लोगों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए। मौलिक अधिकारों में एक अधिकार शादी भी है। कोई भी लड़का-लड़की अपने पसंद से एक दूसरे से विवाह कर सकते हैं। इसमें जात-धर्म या क्षेत्र बाधा नहीं बन सकते। लेकिन देश में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनमें शादी नहीं हो सकती। इन्हें 'सपिंड विवाह' कहते हैं। मौलिक अधिकार होने के बावजूद भी कपल इन रिश्तों में शादी नहीं कर सकते। गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने इस हफ्ते एक महिला की याचिका खारिज कर दी। वह हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 5(v) को असंवैधानिक घोषित करने की लंबे समय से कोशिश कर रही थी। यह धारा दो हिंदूओं के बीच शादी को रोकती है अगर वे सपिंड हैं। अगर उनके समुदाय में ऐसा रिवाज होता है तो ये लोग शादी कर सकते हैं। 22 जनवरी को दिए अपने आदेश में, कोर्ट ने कहा कि अगर शादी के लिए साथी चुनने को बिना नियमों के छोड़ दिया जाए, तो गैर-कानूनी रिश्ते को मान्यता मिल सकती है। ये तो हो गई अब तक की अपडेट। संपिड शब्द अपने आप में कुछ लोगों के लिए नया तो कुछ लोगों के लिए आम हो सकता है। संपिड विवाह को लेकर हमारी पूरी बात टिकी है।

क्या है सपिंड विवाह
सपिंड विवाह उन दो लोगों के बीच होता है जो आपस में खून के बहुत करीबी रिश्तेदार होते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट में, ऐसे रिश्तों को सपिंड कहा जाता है। इनको तय करने के लिए एक्ट की धारा 3 में नियम दिए गए हैं। धारा 3(f)(ii) के मुताबिक, 'अगर दो लोगों में से एक दूसरे का सीधा पूर्वज हो और वो रिश्ता सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, या फिर दोनों का कोई एक ऐसा पूर्वज हो जो दोनों के लिए सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, तो दो लोगों के ऐसे विवाह को सपिंड विवाह कहा जाएगा।

हिंदू मैरिज एक्ट के हिसाब से, एक लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों तक किसी से शादी नहीं कर सकता/सकती। मतलब, अपने भाई-बहन, मां-बाप, दादा-दादी और इन रिश्तेदारों के रिश्तेदार जो मां की तरफ से तीन पीढ़ियों के अंदर आते हैं, उनसे शादी करना पाप और कानून दोनों के खिलाफ है।बाप की तरफ से ये पाबंदी पांच पीढ़ियों तक लागू होती है। यानी आप अपने दादा-परदादा आदि जैसे दूर के पूर्वजों के रिश्तेदारों से भी शादी नहीं कर सकते/सकतीं। यह सब इसलिए है कि बहुत करीबी रिश्तेदारों के बीच शादी से शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। हालांकि, कुछ खास समुदायों में अपने मामा-मौसी या चाचा-चाची से शादी करने का रिवाज होता है, ऐसे में एक्ट के तहत उस शादी को मान्यता दी जा सकती है।


पिता की तरफ से ये शादी को रोकने वाली पाबंदी परदादा-परनाना की पीढ़ी तक या उससे पांच पीढ़ी पहले तक के पूर्वजों के रिश्तेदारों तक जाती है। मतलब, अगर आप ऐसे किसी रिश्तेदार से शादी करते हैं जिनके साथ आपके पूर्वज पांच पीढ़ी पहले तक एक ही थे, तो ये शादी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत मानी नहीं जाएगी। ऐसी शादी को "सपिंड विवाह" कहते हैं और अगर ये पाई जाती है और इस तरह की शादी का कोई रिवाज नहीं है, तो उसे कानूनी तौर पर अमान्य घोषित कर दिया जाएगा। इसका मतलब है कि ये शादी शुरू से ही गलत थी और इसे कभी नहीं हुआ माना जाएगा।

सपिंड शादी पर रोक में क्या कोई छूट है?
जी हां! इस नियम में एक ही छूट है और वो भी इसी नियम के तहत ही मिलती है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, अगर लड़के और लड़की दोनों के समुदाय में सपिंड शादी का रिवाज है, तो वो ऐसी शादी कर सकते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 3(a) में रिवाज का जिक्र करते हुए बताया गया है कि एक रिवाज को बहुत लंबे समय से, लगातार और बिना किसी बदलाव के मान्यता मिलनी चाहिए। साथ ही, वो रिवाज इतना प्रचलित होना चाहिए कि उस क्षेत्र, कबीले, समूह या परिवार के हिंदू मानने वाले उसका पालन कानून की तरह करते हों। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि सिर्फ पुरानी परंपरा ही काफी नहीं है। अगर कोई रिवाज इन शर्तों को पूरा करता है, तो भी उसे तुरंत मान्यता नहीं दी जाएगी। ये रिवाज "स्पष्ट, अजीब नहीं और समाज के हितों के विरुद्ध नहीं" होना चाहिए। इसके अलावा, अगर परिवार के भीतर ही कोई रीति-रिवाज चलता है, तो उसे उस परिवार में बंद नहीं होना चाहिए यानी उसके अस्तित्व पर सवाल न उठे हों। मतलब, वो परंपरा वहां अभी भी सच में मान्य होनी चाहिए।

कानून को किसके तहत दी गई चुनौती?
इस कानून को महिला ने अदालत के सामने चुनौती दी थी। हुआ यह था कि 2007 में, उसके पति ने अदालत के सामने यह साबित कर दिया कि उनकी शादी सपिंड विवाह थी और महिला के समुदाय में ऐसी शादियां नहीं होतीं। इसलिए उनकी शादी को अमान्य घोषित कर दिया गया था। महिला ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन अक्टूबर 2023 में कोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी। मतलब, अदालत ने ये माना कि सपिंडा विवाह को रोकने वाला हिंदू मैरिज एक्ट का नियम सही है। महिला ने हार नहीं मानी और दोबारा हाई कोर्ट में उसी कानून को चुनौती दी। इस बार उन्होंने ये कहा कि सपिंड शादियां कई जगह पर होती हैं, चाहे वो समुदाय का रिवाज न भी हो। उन्होंने दलील दी कि हिंदू मैरिज एक्ट में सपिंड शादियों को सिर्फ इसलिए रोकना कि वो रिवाज में नहीं, असंवैधानिक है। ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो बराबरी का अधिकार देता है। महिला ने आगे यह भी कहा कि दोनों परिवारों ने उनकी शादी को मंजूरी दी थी, जो साबित करता है कि ये विवाह गलत नहीं है।

हाईकोर्ट का क्या जवाब था?
दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला की दलीलों को स्वीकार नहीं किया। कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने माना कि याचिकाकर्ता ने पक्के सबूत के साथ किसी मान्य रिवाज को साबित नहीं किया, जो कि सपिंड विवाह को सही ठहरा सके। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि शादी के लिए साथी चुनने का भी कुछ नियम हो सकते हैं। इसलिए, कोर्ट ने माना कि महिला ये साबित करने में कोई ठोस कानूनी आधार नहीं दे पाईं कि सपिंड शादियों को रोकना संविधान के बराबरी के अधिकार के खिलाफ है।

सपिंड विवाह को लेकर बाकी देशों में क्या है?
कई यूरोपीय देशों में ऐसे रिश्तों के लिए कानून भारत की तुलना में कम सख्त हैं जिन्हें भारत में गैर-कानूनी संबंध या सपिंड विवाह माना जाता है। जैसे कि फ्रांस में, साल 1810 के पीनल कोड के तहत व्यस्कों के बीच आपसी सहमति से होने वाले इन रिश्तों को गैर-अपराध बना दिया गया था। यह कोड नेपोलियन बोनापार्ट के शासन में लागू किया गया था और बेल्जियम में भी लागू था। हालांकि, साल 1867 में बेल्जियम ने अपना खुद का पीनल कोड बना लिया, लेकिन वहां आज भी इस तरह के रिश्ते कानूनी रूप से मान्य हैं। पुर्तगाल में भी इन रिश्तों को अपराध नहीं माना जाता। आयरलैंड गणराज्य में 2015 में समलैंगिक विवाह को मान्यता तो दी गई, लेकिन इसमें ऐसे रिश्ते शामिल नहीं किए गए। इटली में ही ये रिश्ते सिर्फ तभी अपराध माने जाते हैं जब ये समाज में हंगामा मचाए। अमेरिका में बात थोड़ी अलग है। वहां के सभी 50 राज्यों में सपिंडा जैसी शादियां अवैध हैं। हालांकि, न्यू जर्सी और रोड आइलैंड नाम के दो राज्यों में अगर व्यस्क लोग आपसी सहमति से ऐसे रिश्ते में हैं तो इसे अपराध नहीं माना जाता।

- अलकनंदा स‍िंंह

https://www.legendnews.in/single-post?s=a-new-debate-has-arisen-due-to-the-court-s-decision-as-to-why-superannuation-is-prohibited-in-the-hindu-marriage-act-15942 

बुधवार, 6 मार्च 2024

भारत में अबॉर्शन को लेकर क्या कहता है कानून, जानें


 फ्रांस ने महिलाओं को गर्भपात का संवैधानिक अधिकार देने के बाद फ्रांस की राजधानी पेरिस में एफिल टॉवर पर हजारों की तादाद में महिलाएं पुरुष जमा हुए थे फ्रांस के एक ऐतिहासिक फैसले का जश्न मनाने. टॉवर पर लाइट्स के साथ बड़े बड़े अक्षरों में My Body My Choice लिखा था. 

फ्रांस ने महिलाओं को गर्भपात का संवैधानिक अधिकार देने के बाद ऐसा करने वाला वो दुनिया का पहला देश बन गया है. फ्रांस में पिछले कई दिनों से महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिए जाने की मांग की जा रही थी. इसे लेकर कई सर्वे भी कराए गए थे, जिनमें 85% लोगों ने इसका समर्थन किया था.

पुर्तगाल से लेकर रूस तक 40 से अधिक यूरोपीय देशों में महिलाएं गर्भपात की सुविधा ले सकती हैं लेकिन इस शर्त पर कि गर्भावस्था कितने दिनों की हो गई है.

आइये जानते हैं क‍ि अबाॉर्शन को लेकर भारत में क्या नियम हैं- 

2023 में भारत में गर्भपात का मुद्दा काफी सुर्खियों में रहा था. 26 सप्ताह की गर्भवती विवाहित महिला गर्भपात की गुहार लगाते सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. पर उस महिला को आखिर में निराशा ही मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने 26 हफ्ते का गर्भ गिराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि चूंकि महिला 26 हफ्ते और पांच दिन की गर्भवती है, इसलिए गर्भावस्था को समाप्त करना कानून का उल्लंघन होगा. कानून कहता क्या है?

भारत में गर्भपात को नियंत्रित करने वाले कानून का नाम है-मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971. एक रजिस्टर्ड चिकित्सक गर्भपात कर सकता है. पर कुछ शर्तो के साथ. पहला अगर प्रेगनेंसी से महिला के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा हो. दूसरा अगर भ्रूण के गंभीर मानसिक रूप से पीड़ित होने की संभावना हो. तीसरा यह कि अगर डॉक्टर को लगता है कि प्रसव होने पर महिला को शारीरिक असामान्यताएँ होंगी तो अबॉर्शन का अधिकार है.

ऐसे कई मामले सुनने को मिलते हैं कि कोई महिला गर्भनिरोधक लेने के बावजूद गर्भवती हो जाती है. इस स्थिती में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 में कहा गया है कि इसे गर्भनिरोधक नाकामी का नतीजा माना जाएगा और और गर्भपात की अनुमति होगी. इसके अलावा 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अविवाहित महिला को भी 24 हफ्ते तक गर्भपात कराने की अनुमति दिया जाना चाहिए. रेप के मामले में भारत का कानून कहता है कि 24 हफ्ते तक का अबॉर्शन कराया जा सकता है.

- Alaknanda Singh 

सोमवार, 4 मार्च 2024

इन कथाओं और प्रतीकों के माध्यम से हमारे पूर्वजों ने अत्यंत गूढ़ संदेश दिए

हिंदू आख्यान शास्त्र के अनुसार श्वान को सबसे अशुभ प्राणी माना जाता है इसलिए उसे विवाह मंडपों और अन्य पवित्र जगहों के निकट आने से रोका जाता है। रोता हुआ श्वान दुर्भाग्य का अगुआ होता है। श्वान को देखना भी दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है लेकिन श्वान तो प्यारे, आज्ञाकारी और स्नेहमय प्राणी हैं। 

ऋग्वेद के अनुसार भी इंद्र ने खोई हुईं गायों को ढूंढने हेतु श्वानों की माता ‘सरमा’ को भेजा था। इससे उन्होंने स्वीकार किया कि श्वान रक्षा करने में भूमिका निभाते हैं। कथानकों में श्वानों को मृत्यु से जोड़ा जाता है इसलिए सरमा की संतान ‘सरमेय’ यमदेव के साथी होते हैं। उन्हें बंजर भूमि के साथ भी जोड़ा जाता है, न कि सभ्यता के साथ। श्वान शिव के उग्र रूप ‘भैरव’ का वाहन है। श्वान इतना अशुभ माना गया है कि महाभारत में युधिष्ठिर को श्वान के संग स्वर्ग में प्रवेश करने से रोका गया। 

आख्यान शास्त्र का कभी शाब्दिक अर्थ नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक अर्थ लिया जाना चाहिए। इन कथाओं और प्रतीकों के माध्यम से हमारे पूर्वजों ने अत्यंत गूढ़ संदेश दिए। चूंकि श्वान अशुभ माने जाते हैं, वे एक अशुभ विचार से जुड़े हैं। यह कौन-सा विचार है? भागवत पुराण में जड़ भरत नामक त्रषि की कहानी है। सब कुछ त्यागने के बावजूद वे एक हिरण से आसक्त हुए और इसलिए मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाए। उन्होंने हिरण बनकर पुनर्जन्म लिया। हिंदू दर्शनशास्त्र का मुख्य सिद्धांत यह है कि आसक्त होने से हम फंस जाते हैं। 

अब कल्पना करें कि एक श्वान आपकी ओर आतुरता और स्नेह भरी आंखों से देख रहा है- उसके प्रेममय व्यवहार से आपका हृदय पिघल जाता है। पालतू श्वान हमेशा अपने मालिक से पुष्टि चाहता है। उस पर ध्यान देने पर वह पूंछ हिलाता है और ध्यान न देने पर रोता है। अब श्वानों से घिरे एक संन्यासी की कल्पना करें। जैसे भरत हिरण से आसक्त हुए, वैसे क्या संन्यासी भी इन श्वानों से आसक्त हुए होंगे? 

पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति पाने के लिए उन्हें आसक्ति की तीव्र इच्छा के पार जाना होगा। श्वान अपने मालिक से अबाध प्रेम करता है और इसलिए श्वान से प्रलोभित होना अप्सराओं से प्रलोभित होने से भी आसान है। सदा चार श्वानों से घिरे दत्तात्रेय तटस्थता के प्रतीक थे। श्वान दत्तात्रेय का पीछा करते थे, लेकिन दत्तात्रेय उन्हें प्रलोभन नहीं देते थे। श्वान क्षेत्रीय प्राणी है इसलिए वह अपने मालिक को भी किसी के साथ नहीं बांटता है। यदि उसे लगा कि उसका क्षेत्र खतरे में है या कोई उसके मालिक के निकट आ रहा है तो वह गुर्राता या भौंकता है। 

हमारे पूर्वज जान गए थे कि मनुष्यों में ऐसा व्यवहार अवांछनीय है। मनुष्य भी क्षेत्रीय जीव है। हमारा क्षेत्र चिह्नित करने से हमारी पहचान निर्मित होती है। एक उद्योगपति की पहचान उसके उद्योग हैं; एक नौकरशाह की पहचान उसका पद है; एक राजनीतिज्ञ की पहचान राजनीतिक दल और उसकी सत्ता है। यदि किसी का यह संदर्भ खतरे में रहा तो उसकी आक्रामक प्रतिक्रिया होगी, कुछ वैसे जैसे श्वान की होती है। 

हमें लगता है कि अपने क्षेत्र (शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक) से अधिकार चले जाने पर हमारी पहचान भी नष्ट होगी। इससे हम भयभीत होते हैं। जब हमारा क्षेत्र सुदृढ़ बनता है, तब हम श्वान जैसे प्रसन्न होते हैं। जब क्षेत्र खतरे में होता है, तब हम आक्रामक बनते हैं। और जब हमारे क्षेत्र की उपेक्षा होती है, तब हम रूठ जाते हैं। इस व्यवहार की जड़ भय में है। भैरव हमें इस भय से पार जाने में मदद करते हैं। वे हमारी आदिम, क्षेत्रीय सहज-बुद्धि का ठठ्ठा करते हैं। फलस्वरूप हम उनसे आतंकित होते हैं। दिल्ली और वाराणसी के काल भैरव मंदिरों में उन्हें मदिरा अर्पित की जाती है। मदिरा हमारे विवेक को धुंधला बनाती है और हममें यह विकृत समझ आती है कि क्षेत्र के कारण ही पहचान निर्मित होती है। हम भूल जाते हैं कि हम हमारे क्षेत्र के लिए जितना भी लड़ें, एक न एक दिन यमदेव और उनके सरमेय हमें उससे दूर ले जाएंगे। 

हमारे भौतिक, मानसिक और भावनात्मक क्षेत्रों के बारे में हम इतने असुरक्षित अनुभव करते हैं कि जीवन के अंतिम क्षणों तक उनके लिए कुछ उस तरह लड़ते हैं, जिस तरह श्वान हड्डी के लिए लड़ता है। और मृत्यु के पश्चात शरीर के श्मशान पहुंचने पर हम पाते हैं कि वहां श्वान पर बैठे भैरव हम पर हंस रहे हैं कि हमने हमारा जीवन व्यर्थ की खोज में गंवा दिया।

- Alaknanda Singh 

सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

क्या होती है प्रिविलेज कमेटी...संदेशखाली मामले के बाद आई चर्चा में, क्या हैं समिति के अधिकार और कैसे करती है काम

संदेशखाली मामले में संसद की प्रिविलेज कमेटी यानी विशेषाधिकार समिति की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. इससे ममता बनर्जी सरकार को राहत मिली है, तो अब जानते हैं क‍ि क्या होती है ये प्रिविलेज कमेटी.

राज्यसभा और लोकसभा, दोनों में ही प्रिविलेज कमेटी होती है. इसका गठन लोकसभा अध्यक्ष या सभापति करते हैं. समिति में दलों की संख्या के आधार पर उन्हें प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलता है. लोकसभा की प्रिविलेज कमेटी में 15 सदस्य और राज्यसभा की विशेषाधिकार समिति में 10 मेम्बर्स होते हैं. लोकसभा अध्यक्ष यहां की समिति प्रमुख होते हैं. वहीं, राज्यसभा विशेषाधिकार समिति के प्रमुख उपसभापति होते हैं. सदन में दलों की संख्या के आधार पर ही वो समिति के सदस्यों को नामित करते हैं.

क्या हैं समिति के अधिकार और कैसे काम करती है?

जब भी सदन में किसी सांसद के विशेषाधिकार का हनन होता है या इसके उल्लंघन का मामला सामने आता है तो उसकी जांच इसी कमेटी को सौंपी जाती है. संसदीय विशेषाधिकार उन अधिकारों को कहते हैं जो दोनों सदनों के सदस्य को मिलते हैं. इन अधिकारों का मकसद सदन, समिति और सदस्यों को उनके कर्तव्य को पूरा करने में मदद करना. ये संसदीय विशेषाधिकार संसद की गरिमा, स्वतंत्रता और स्वायत्तता की सुरक्षा करते हैं.

सदस्यों से जुड़े मामले इस कमेटी तक पहुंचने के बाद यह पूरी स्थिति को समझती है. कड़े कदम उठाती है. अगर कोई सदस्य विशेषाधिकार का उल्लंघन करता है तो उसे दंडित किया जाए या नहीं, यह सबकुछ समिति तय करती है. समिति उसकी सदस्यता रद करने से लेकर उसे जेल भेजने की सिफारिश भी कर सकती है. कमेटी अपनी रिपोर्ट तैयार करके अध्यक्ष को सौंप देती है.

संसद में किसी भी सदस्य के विशेष अधिकारों का हनन होता है या वो किसी तरह से आहत होते हैं तो इसे उनके विशेषाधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है. सदन के आदेश को न मानना, समिति या फिर इसके सदस्यों के खिलाफ अपमानित करने वाले लेख लिखना भी इनके विशेष अधिकारों का उल्लंघन करना ही है. साथ ही सदन की कार्यवाही में बाधा पहुंचाना भी इसका उल्लंघन है.

कब-कब चर्चा में रही कमेटी?

संसद की विशेषाधिकार समिति कई बार चर्चा में रही है. पश्चिम बंगाल के मामले से पहले भाजपा नेता रमेश बिधूड़ी और बीएसपी सांसद दानिश अली का मामला इस समिति तक पहुंचा था.इससे पहले 1967, 1983, और 2008 में भी कई ऐसे मामले आए जो विशेषाधिकार समिति तक पहुंचे.

1967 में दो लोगों में दर्शक दीर्घा में पर्चे फेंकने का मामला सामने आया. 1983 में चप्पल फेंकने और नारे लगाने का मामला उठा. वहीं 2008 में एक ऊर्दू वीकली के संपादक के जुड़ा मामला सामने आया था. उसके संपादक ने राज्यसभा के सभापति को कायर बताते हुए टिप्पणी की थी.

- Alaknanda Singh 

शनिवार, 10 फ़रवरी 2024

साइबरबुलिंग: बच्चों को बचाने के ल‍िए यूनिसेफ ने द‍िए बचाव के टिप्स

 आज ये वाली पोस्ट खाल‍िस जानकारी के ल‍िए है, इसमें मैंने कोई भी 'अपना' प्रयास नहीं क‍िया है. 

सोशल मीडिया ऐप पर अभी तक आपने ट्रोल करना सुना होगा जिसमें किसी कमेंट या पोस्ट पर लोग अपनी भड़ास निकाल कर सामने वाले को अपना स्टेंड वापस लेने के लिए मजबूर करते हैं.

लेकिन साइबरबुलिंग इससे एक कदम आगे बढ़कर बड़े छोटे सबके लिए नुकसानदायक साबित हो रही है. साइबरबुलिंग में डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके किसी को जानबूझ कर तंग करना या डराया-धमकाया जाता है. इसमें इंटरनेट या मोबाइल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके असभ्य, घटिया या तकलीफ़देह संदेश, टिप्पणियां और इमेज/वीडियो भेजना शामिल है. ऐसे में यूनिसेफ ने साइबरबुलिंग से बचने के लिए कुछ टिप्स शेयर किए हैं.


यूनिसेफ के साइबरबुलिंग से बचाव के टिप्स


1. मजबूत पासवर्ड का इस्तेमाल करें: अपने सभी ऑनलाइन खातों के लिए मजबूत और यूनिक पासवर्ड का उपयोग करें.


2. अपनी निजी जानकारी को सीमित रखें: अपनी निजी जानकारी, जैसे कि अपना पूरा नाम, पता, या फोन नंबर, सार्वजनिक रूप से ऑनलाइन साझा करने से बचें.


3. सोच समझकर पोस्ट करें: ऑनलाइन कुछ भी पोस्ट करने से पहले सोचें कि यह दूसरों को कैसे प्रभावित कर सकता है.


4. साइबरबुलिंग को पहचानें: यदि आपको लगता है कि आप या आपके किसी परिचित को साइबरबुलिंग का सामना करना पड़ रहा है, तो उसे पहचानें और उससे निपटने के लिए कदम उठाएं.


5. साइबरबुलिंग के खिलाफ खड़े हों: यदि आप साइबरबुलिंग देखते हैं, तो चुप न रहें. इसके खिलाफ आवाज उठाएं और पीड़ित का समर्थन करें.


6. सबूत इकट्ठा करें: यदि आपको साइबरबुलिंग का सामना करना पड़ रहा है, तो सबूत इकट्ठा करना महत्वपूर्ण है. स्क्रीनशॉट, ईमेल, और टेक्स्ट संदेशों को सहेजें जो साइबरबुलिंग का प्रमाण हैं.


7. किसी विश्वसनीय वयस्क से बात करें: यदि आपको साइबरबुलिंग का सामना करना पड़ रहा है, तो किसी विश्वसनीय वयस्क से बात करें, जैसे कि माता-पिता, शिक्षक, या परामर्शदाता.


8. साइबरबुलिंग के बारे में दूसरों को शिक्षित करें: अपने दोस्तों, परिवार, और समुदाय को साइबरबुलिंग के बारे में शिक्षित करें और उन्हें इसके खिलाफ खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करें.


9. ऑनलाइन सुरक्षित रहने के लिए टूल का उपयोग करें: ऑनलाइन सुरक्षित रहने में आपकी मदद करने के लिए कई टूल उपलब्ध हैं. इन टूल का उपयोग करें और अपने ऑनलाइन अनुभव को सुरक्षित बनाएं.


10. साइबरबुलिंग रिपोर्ट करें: यदि आपको साइबरबुलिंग का सामना करना पड़ रहा है, तो इसे संबंधित अधिकारियों को रिपोर्ट करें.


11. साइबरबुलिंग से डरें नहीं: याद रखें कि आप अकेले नहीं हैं. साइबरबुलिंग से डरें नहीं और इसके खिलाफ खड़े होने के लिए अपनी आवाज का उपयोग करें.


सोमवार, 29 जनवरी 2024

यव अर्थात् यौवन: धार्मिक अनुष्ठानों में 'जौ' का उपयोग और इसके न‍िह‍ितार्थ


 अमेरिका के मेडिसन राज्य में कृषि विभाग अनुसधान केंद्र में काम कर रहे एक वैज्ञानिक को उसके पाकिस्तानी पिता ने बताया था कि जिस क्षेत्र में वे ग्रामीणों का इलाज करते हैं, वहां दिल का दौरा पड़ना एक अप्रत्याश‍ित बात है। शायद ही किसी को दिल का कोई गम्भीर रोग हो। 

वैज्ञानिक डॉक्टर आसिफ कुरैशी के पिता पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक चिकित्सक थे। पिता के अनुसार वहां लोग बड़ी मात्रा में जौ खाते हैं क्योंकि यही उस इलाके का मुख्य अनाज है और यही इनके स्वास्थ्य का रहस्य है। कुरैशी अपने पिता के इस अनुभव को वैज्ञानिक स्तर पर सिद्ध करना चाहते थे और अमेरिका की इस प्रयोगशाला में जौ के गुणों की खोज करने लग गए।

यव अथवा जौ पाकिस्तान के पंजाब में ही नहीं, पूरे भारत के कई क्षेत्रों में लोगों का मुख्य भोजन हुआ करता था और आज भी भोजन का महत्त्वपूर्ण अंग है। दैनिक खाने में इस की कमी तभी से आने लगी जबसे जौ का एक और व्यावसायिक उपयोग मालूम हुआ अर्थात् बियर बनाना। जौ रसोई से हट कर शराबखाने में स्थापित हुआ। 

यह भारतखण्ड के प्राचीनतम अन्नों में से एक है, गेहूं से बहुत पुराना और शायद चावल से भी कुछ प्राचीन। इसीलिए हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में चावल के साथ-साथ जौ का ही उपयोग होता रहा है। जौ पोषक आहार है, यह तो सभी जानते और मानते थे लेकिन वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में इतना पर्याप्त नहीं होता। 
वैज्ञानिक जानना चाहते हैं कि इसमें ऐसा क्या है जो इसे पोषक आहार बनाता है और यह भी कि जो रसायनिक पदार्थ इसमें हैं, वे काम किस प्रकार करते हैं।
डाक्टर कुरैशी को पता लगा कि कुछ खाद्य पदार्थ, विशेष कर जौ और जई जैसे अन्न जिगर में उस रासायनिक प्रक्रिया को दबाते हैं जिनसे रक्त में कोलस्ट्रोल पैदा होता है। 

दरअसल बताया जाता है कि अगर हम अपने यकृत के साथ जबरदस्ती करना छोड़ दे, तो हम अपने आपको दिल की बीमारी से भी बचा सकते हैं। अगर यकृत कम कोलेस्ट्रॉल बना ले तो जिन कोश‍िकाओं को रोगकारक एलडीएल की आवश्यकता होती है, वे रक्त से उसे खींच लेती हैं, यानी रक्त में इस प्रकार कोलेस्ट्रॉल एकदम कम हो जाता है। इसी विशेषता के कारण इस बीमारी की पहली औषधि– लोवस्टेटिन बनी। 

यकृत जब कोलेस्ट्रोल बनाने वाली फैक्ट्री में बदल जाता है तो इसकी गतिविधि को कम करना आवश्यक हो जाता है। यह जौ में मौजूद रसायानों के कारण हो सकता है। जब कोलेस्ट्रॉल बनाने वाली प्रक्रिया को धीमा कर दिया जाता है तो एलडीएल बनना बंद होता है और रक्त कोश‍िकाओं के नष्ट होने का खतरा भी समाप्त हो जाता है। डाक्टर आसिफ कुरेशी की यात्रा यहीं पर समाप्त हो गई।

आगे की यात्रा ‘डाक्टर फाइबर’ ने आरम्भ की। फाइबर उनका नाम नहीं था, मोटे अनाजों के फाइबर के बारे में उनके जुनून के कारण उनकी पहचान थी, नाम तो जेम्स एंडरसन था। उन्होंने भी ऐसी किसी बात का आविष्कार नहीं किया जिसके बारे में समाज नहीं जानता था। लोक में तो वह बात प्रचलित ही थी लेकिन कुरेशी की ही तरह एंडरसन ने उसे प्रयोगशाला में सही सिद्ध कर दिया। यह आश्चर्य की बात लगती है कि पिछले दो दशक से दुनिया भर में गंवारू तरह के मोटे अनाजों को इज्जत से देखा जाने लगा है। 

आज कल बीसियों तरह के खाद्य बाजार में मिलते हैं जिनमें दावा किया जाता है कि उन में रेशा या फाइबर मिला हुआ है। एंडरसन को लगा कि मुख्य अनाज के अतिरिक्त कुछ तो और है जो कोलेस्ट्रोल बनाने की प्रक्रिया को थामता है। कई प्रकार के प्रयोगों के पश्चात उन्हें पता चला कि वह जौ और जई जैसे अनाजों की बाहरी परत है, जिसमें ऐसे गुण बहुतायत में पाए जाते हैं जो कोलेस्ट्रोल को रोकते हैं। वे वैज्ञानिक तो थे और उनके अनुसंधान का उद्देश्य तो जनहित ही था लेकिन उनके जुनून के पीछे उनका अपनी पीड़ा भी थी। वे रोगी थे, उनका रक्तचाप असाधारण तौर पर ऊंचा रहता था, लगभग 300 से ऊपर। उन्होंने पाया था कि जो लोग फाइबर समेत जौ और जई जैसे अनाजों का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं, उनका न केवल कोलेस्ट्रोल ही नियंत्रण में होता बल्क‍ि वे और मायनों में भी अधिक स्वस्थ रहते हैं। उनकी उम्मीद थी कि अगर उस तत्त्व को खोज पाएं, जिसके कारण यह संभव होता है तो उनके रक्तचाप का भी इलाज होगा।

उन दिनों यानी वर्ष 1976 में एक कम्पनी जेई यानी ओटस का एक उत्पाद बडे पैमाने पर बेच रही थी जो कुत्ते बिल्ली जैसे पालतू जानवरों के खाने के लिए उपयोगी माना जाता था। एंडरसन ने उस कम्पनी क्वैकर ओटस कम्पनी को लिखा कि उन्हें जई की भूसी उपलब्ध कराएं। उन्हें मालूम था कि कम्पनी अपना व्यापारिक माल बनाते समय भूसी तो बचा कर रखते नहीं लेकिन उन्हें भी पता था कि जई की भूसी बर्तन की पैंदी में चिपक जाती है और कम्पनी जिन बड़े-बड़े पात्रों में अपना माल बनाती होगी, उनकी पैंदी से भूसी मिल ही जाएगी। हुआ भी वैसा ही।

कम्पनी ने एक बड़ा ड्रम भूसी का भेज ही दिया, जो 533 लोगों को एक बार खिलाई जा सकती थी या पच्चास व्यक्तियों को दस-ग्यारह बार लेकिन इसकी आधी तो एंडरसन ने स्वयं ही खा डाली। कुछ समय पश्चात वे उत्साह में बोले, ‘ मेरा रक्तचाप कुछ ही सप्ताह मे 285 से 175 अंश तक गिर गया। 110 अंश नीचे। मैं शायद पहला मानव हूं जिसने जई की भूसी रक्तचाप कम करने के लिए खाई होगी।’
डाक्टर एंडरसन को यह नहीं पता था कि पूरब में यह बात लगभग हर ग्रामीण को मालूम थी, अलबत्ता वे रक्तचाप और कोलेस्ट्राल जैसी शब्दावली नहीं जानते थे। अनुसंधान की लम्बी यात्रा के पश्चात अब यह चिकित्सक जानते हैं कि जहां जौ सीधे-सीधे यकृत में ही कोलेस्ट्रोल बनाने की प्रक्रिया पर अंकुश लगाता है, वहीं जई की भूसी अंतड़ियों में कुछ रासायनिक पदार्थों में बदल कर आंतों से बाइल के एसिडों को धो डालता है। अगर ऐसा न होता तो ये एसिड जो आंतों में बनते हैं, अंत में कोलेस्ट्राल में बदल जाते हैं। 

ठीक इसी आधार पर प्रसिद्ध ऐलेापैथिक औषधि कोलेस्टाइरामाइन भी आंतों को सफाई करके रोग का इलाज करती है।

इन वैज्ञानिकों और दूसरे शोधकर्ताओं के शोध से एक बात साफ तौर पर समझ में आनी चाहिए कि निरामिष यानी केवल शाकाहारी भोजन करने भर से ही कुछ रोगों का हम उतनी कुशलता के साथ सामना कर सकते हैं, जितनी कुशलता की हम आधुनिकतम औषधियों से आशा करते हैं। केवल इतना ही नहीं, प्राकृतिक आहार के कारण लगातार हमारे शरीर में ऐसे सक्रिय औषधीय गुणों से युक्त पदार्थों को आहार के रूप में नियमित तौर पर लेते रहते हैं जो अनेक रोगों को आरम्भ ही नहीं होने देते। निरामिष आहार करने वाले समाजों के दीर्घजीवी होने का बस यही रहस्य है। जौ और जेई की भूसी से बना आहार विशेष रूप से उन लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है जिनको आंतों की गम्भीर बीमारियों जैसे कैंसर आदि का खतरा रहता है।

रविवार, 21 जनवरी 2024

रामलला मूर्ति की प्राण-प्रतिष्‍ठा: शुभ घड़ी आई... 50 वाद्ययंत्रों द्वारा 2 घंटे तक गूंजेगी मंगल ध्‍वनि


 रामलला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्‍ठा आयोजन को भव्‍य, दिव्‍य और नव्‍य बनाने के लिए हरसंभव प्रयास किया जा रहा है. इसी के तहत देश के विभिन्‍न राज्‍यों से आए 50 से ज्‍यादा वाद्य यंत्र की मंगल घ्‍वनि गूंजेगी.  

22 जनवरी को देश दिवाली मनाने जा रहा है. देश ही नहीं विदेशों से भी रामलला के लिए बेशकीमती तोहफे आए हैं. साथ ही प्राण-प्रतिष्‍ठा कार्यक्रम के ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने के लिए रामभक्‍तों का अयोध्‍या पहुंचने का सिलसिला जारी है. पूरी अयोध्‍या नगरी सजकर तैयार है. 22 जनवरी को जब रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्‍ठा होगी, उससे 2 घंटे पहले से ही राम मंदिर परिसर में मंगल ध्‍वनि गूंजने लगेगी. वैदिक मंत्रोच्‍चार के साथ-साथ देश के तमाम राज्‍यो से आए 50 से ज्‍यादा शुभ वाद्य यंत्र भी बजाए जाएंगे. कह सकते हैं कि यह मंगल ध्‍वनि, मंत्रोच्‍चार, पूजा-पाठ आदि पूरे माहौल को एक अनोखी दिव्‍यता देंगे. 

मनमोहक मंगल ध्‍वनि 
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने रविवार को घोषणा की है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दिन मंगल ध्वनि का कार्यक्रम भी होगा. यह एक मनमोहक संगीत कार्यक्रम होगा, जिसमें विभिन्न राज्यों से आए 50 से अधिक उत्कृष्ट वाद्ययंत्र इस शुभ मौके पर एक साथ बजाए जाएंगे. करीब 2 घंटे तक यह मंगल ध्‍वनि गूजेगी. इस मांगलिक संगीत कार्यक्रम के परिकल्पनाकार और संयोजक यतीन्द्र मिश्र हैं, जो प्रख्यात लेखक, अयोध्या संस्कृति के जानकार और कलाविद हैं. वहीं इस कार्यक्रम में केंद्रीय संगीत नाटक अकादेमी, नई दिल्ली भी सहयोग दे रही है. 
 
मुहूर्त से ठीक पहले होगा वादन

श्रीरामजन्मभूमि प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के ऐतिहासिक मौके पर मुख्‍य मुहूर्त से पहले सुबह 10 बजे से ही करीब 2 घंटे तक 'मंगल ध्वनि का आयोजन किया जाएगा. श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि हमारी भारतीय संस्कृति की परम्परा में किसी भी शुभ कार्य, अनुष्ठान, पर्व के अवसर पर देवता के सम्मुख आनन्द और मंगल के लिए पारम्परिक ढंग से मंगल- ध्वनि बजाने का विधान है.

इसे लेकर ट्रस्‍ट ने पोस्‍ट में लिखा है- 'भक्ति में डूबे हुए, अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर प्राण प्रतिष्ठा का समारोह सुबह 10 बजे राजसी 'मंगल ध्वनि' से सुशोभित होगा. विभिन्न राज्यों के 50 से अधिक उत्कृष्ट वाद्ययंत्र इस शुभ अवसर पर एक साथ बजेंगे और लगभग दो घंटे तक गूंजते रहेंगे. विभिन्न राज्यों के ये अनोखे वाद्य यंत्र, दिव्य आर्केस्ट्रा में एकजुट होंगे. इससे भारत की सदियों पुरानी परंपराओं को अपनाने और पुनर्जीवित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है."

- Alaknanda Singh 

बुधवार, 3 जनवरी 2024

यह आपके ल‍िए काम की खबर है, FSSAI क्वालिटी को लेकर क्यों कर रहा है 'चाय पर चर्चा', जान‍िए

 


 


बात सर्दी की हो या क‍ि गर्मी का मौसम, कम से कम मुझे तो चाय हर मौसम में चाह‍िए... इसल‍िए मेरी तरह हो सकता है क‍ि आप भी इस सांवली सलोनी रंगत वाले पेय के मुरीद हों परंतु ये खबर हमें चौंका रही है. 

आप भी जान लीज‍िए क‍ि सर्दियों में हम सभी चाय में गर्माहट ढूंढते हैं लेकिन मिलावट कहां, कैसे मिल जाए, ये कोई नहीं कह सकता. देशभर से चाय की पत्तियों के लिए गए सैंपलों फूड रेगुलेटर FSSAI को न जाने क्या-क्या मिला है. फूड रेगुलेटर क्वालिटी को लेकर 'चाय पर चर्चा' कर रहा है. 

दरअसल, इसी महीने के मध्य में इंडस्ट्री, रेगुलेटर, उपभोक्ता मामले मंत्रालय की इस मुद्दे पर बैठक होने वाली है, जिसमें चाय की पत्तियों में मिलावट के खिलाफ कदम उठाए जाएंगे.

FSSAI देशभर से जुटाए सैंपल की जांच कर रहा है. नियामक ने अक्टूबर माह में इंडस्ट्री, एसोसिएशन और अन्य स्टेकहोल्डर्स से चर्चा की थी. फूड रेगुलेटर की जांच आखिरी दौर में चल रही है. 

FSSAI की जांच में 50% से अधिक सैंपल मानक पर खरे नहीं उतरे हैं. देशभर से ये सैंपल इकट्ठा किए गए थे. चाय सैंपल में भारी मेटल, कलर, डस्ट की मिलावट मिली है. कई सैंपल में प्रॉसेस की हुई Used Tea मिली है. ऊपर से फ्लेवर्ड चाय के नाम पर कई तरह की विसंगतियां देखने को मिली हैं.

उधर, चाय की पैदावार बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में कीटनाशक का प्रयोग हो रहा है. मई महीने में 5 पेस्टीसाइड्स emamectin, benzoate, fenpyroximate, hexaconazole, propiconazole, & quinalphos के मिनिमम रेसिड्यू लेवल को लेकर नोटिफिकेशन भी जारी किया गया था. 

आख‍िर  FSSAI क्यों हुआ इतना सक्र‍िय 

भारत में घरेलू आबादी देश में उत्पादित कुल चाय का लगभग 76 प्रतिशत उपभोग करती है. इतनी बड़ी चाय पीने वाली आबादी के बीच चाय में मिलावट की खबरें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. निर्माताओं द्वारा काजू के बाहरी आवरण को जलने तक भूनकर नकली चाय पाउडर बनाने की कई शिकायतें सामने आई हैं. फिर इसे गुणवत्तापूर्ण चाय पाउडर के साथ मिलाया जाता है. अक्सर, निर्माता चाय में प्रतिबंधित रंग भी मिलाते हैं.

इस साल अगस्त में, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने कोयंबटूर से 1.5 टन मिलावटी चाय की धूल जब्त की थी. एफएसएसएआई के नामित अधिकारी के. तमिलसेल्वन ने कहा, “हमने जो 500 ग्राम चाय की धूल के पैकेट जब्त किए उनमें से कुछ में 50 ग्राम चाय की धूल के पाउच में उच्च मात्रा में कलरेंट मिला हुआ था. इस पाउच को गाढ़ा रंग पाने के लिए असली चाय के बुरादे के साथ मिलाया जाना था. कई अन्य पैकेटों में चाय की धूल थी जो रंगों के साथ मिश्रित थी और उपयोग के लिए तैयार थी.

चाय पर FSSAI 2011 विनियमन 2.10.1 (1) में उल्लेख है, "उत्पाद बाहरी पदार्थ, अतिरिक्त रंगीन पदार्थ और हानिकारक पदार्थों से मुक्त होगा. इस साल अक्टूबर में, FSSAI ने असम की एक चाय फैक्ट्री से लाए गए नमूनों की जांच की, तो उन्हें एक पीले रंग का पदार्थ, टार्ट्राज़िन मिला, जिसमें कैंसरकारी गुण पाए गए हैं.

उत्पाद संस्करण में शुद्ध चाय की लोकप्रियता और स्थायित्व के कारण, केवल चाय की खपत को देखने या बेचने से यह पता चलता है कि यह वास्तविक या नकली है. हालांकि, कुछ तरीके हैं जिनसे आप रैना के बारे में पता लगा सकते हैं.

तो आप अंतर कैसे पता कर सकते हैं? 

कैसे पता करें कि चाय को तारकोल के साथ कैसे बनाया गया है

एक फिल्टर पेपर/ब्लॉटिंग पेपर पर कुछ चाय की दुकानें, उन पर थोड़ा सा पानी छिड़कें. एक बार हो जाने पर, चाय की दुकान के नीचे नल के पानी के नीचे कागज और फिल्टर पेपर हटा दिए गए. उन दागों का निरीक्षण करें जो प्रकाश के विपरीत छूट दिए गए हैं. अगर चाय के अवशेष शुद्ध हैं तो फिल्टर पेपर पर दाग नहीं है और अगर आपकी चाय में तारकोल के रूप में उत्पाद है तो आप देखेंगे कि फिल्टर पेपर का रंग तुरंत बदल रहा है.

कैसे पता करें कि चाय की दुकान में आयरन भराव की व्यवस्था की गई है

इसके लिए आपको एक चुंबक की जरूरत पड़ेगी. एक कांच की प्लेट पर थोड़ी मात्रा में चाय की पत्तियां फैलाएं और चुंबक को चाय की पत्तियों के ऊपर धीरे से घुमाएं. चाय की पत्तियां शुद्ध होंगी तो चुंबक भी साफ होगा. हालांकि, मिलावट तब प्रकट होगी जब लोहे का भराव चुंबक से चिपक जाएगा.

ऐसे करें चाय का जल परीक्षण

चाय की शुद्धता जांचने का सबसे आसान तरीका एक गिलास पानी में एक बड़ा चम्मच चाय की पत्तियां मिलाना है. सुनिश्चित करें कि पानी या तो ठंडा है या कमरे के तापमान पर है लेकिन गर्म नहीं है. अगर चाय शुद्ध होगी तो पानी के रंग में कोई बदलाव नहीं आएगा। अगर चाय की पत्तियों में कोई रंग मिला दिया जाए तो रंग तुरंत लाल हो जाएगा, इसलिए सावधान रहें.

चाय की पत्तियों में मिलावट का एक कारण यह है कि जहां एक किलो असली पत्तियों से लगभग 400 से 500 कप चाय बनती है, वहीं चाय की समान मात्रा के लिए कृत्रिम स्वाद और रंग मिलाने से यह संख्या लगभग दोगुनी होकर 800 से 1,000 कप के बीच हो सकती है.

आपके लिए यह जांचने का समय आ गया है कि आपकी चाय शुद्ध है या नहीं.


शनिवार, 30 दिसंबर 2023

विनय कटियार का इंटरव्यू: सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद कर ऐसे तैयार हुई राम जन्म भूम‍ि की मुक्त‍ि की पृष्ठभूमि


 विनय कटियार जी द्वारा द‍िए एक इंटरव्यू के अनुसार यह आलेख हम आपके समक्ष दे रहे हैं।    

श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन जब शुरू हुआ था, तब न शक्ति थी और न सामर्थ्य। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, जनसंघ सहित अन्य कई संगठन अलग-अलग नामों से समाज के विभिन्न-विभिन्न वर्गों में सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक चेतना फैलाने की कोशिश जरूर कर रहे थे। पर, यह कल्पना करना भी मुश्किल था कि यह कोशिश भारतीय सांस्कृतिक चेतना के आधार पर अपने आराध्य के स्थान की मुक्ति के दुनिया के सबसे बड़े सफल आंदोलन का कारण बनेगी। इसका फल न सिर्फ राष्ट्रीय पुनर्जागरण के रूप में, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक फलक पर भी प्रभाव डालने के बड़े कारक के रूप में सामने आएगा।

सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद

कानपुर में 1984 में संघ का शारीरिक शिक्षा वर्ग लगा था। वर्ग हो जाने के बाद प्रचारक के रूप में काम करने वालों के बीच मैं भी बैठा था। तब तक अलग-अलग तरीके से अयोध्या, मथुरा और काशी के मंदिरों को तोड़कर उन स्थानों को मस्जिद का रूप देने की घटनाएं उद्वेलित करने लगी थीं। मैं इन मुद्दों पर बोलता भी रहता था। संकल्प के अतिरिक्त अपने पास कुछ नहीं था। एक कुर्ता-धोती और कंधे पर झोला, जो हमारा कार्यालय भी था और कोष भी।

इसके अलावा यदि पास में था तो सिर्फ आचार्य तुलसीदास की यह पंक्तियां, प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं। तमाम उतार-चढ़ाव के बाद उस विश्वास की परिणति आखिरकार 5 अगस्त के रूप में सामने आना सुनिश्चित हो गया।

ऐसे तैयार हुई मुक्ति की पृष्ठभूमि
प्रचारकों की औपचारिक बैठक के बाद वरिष्ठ प्रचारक सरसंघचालक बाला साहब देवरस, प्रो. राजेन्द्र सिंह रज्जू भैया, बालासाहब भाऊराव देवरस, अशोक सिंहल, मोरोपंत पिंगले, हो.वि. शेषाद्रि जैसे लोग अयोध्या को लेकर चर्चा करने लगे। मैंने अयोध्या के साथ मथुरा व काशी की मुक्ति को लेकर भी चर्चा की। पर, इन वरिष्ठ जनों की राय बनी कि काशी और मथुरा में हमारे मंदिर बने हुए हैं। इसलिए पहले अयोध्या को लेते हैं। चूंकि मुझे ही काम करना था तो मैं सबको प्रणाम करते हुए बाहर निकला।

बाहर प्रो. रज्जू भैया से कहा, मैं तो अयोध्या को बहुत जानता नहीं हूं, तो कैसे काम करना है। रज्जू भैया ने कहा, कुछ नहीं सीधे-सीधे मुक्ति की बात करो। मैं अयोध्या आया, महंत रामचंद्र परमहंस से मिला। वे चूंकि इस मामले में वादी थे। बात की तो नाराजगी से बोले, बच्चा मैं इतने दिन से लड़ाई लड़ रहा हूं, अभी तक तो कुछ हुआ नहीं। तू क्या कर लेगा।

हम लोग लौट आए। अगले दिन फिर गए तो उन्होंने फिर नाराजगी जताई। मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा, आप इतिहास बताइए, सब कुछ होगा। तब उन्होंने कहा, हमारी उम्र तो है नहीं। तुम लोगों को करना है तो करो। हमारा समर्थन और आशीर्वाद है। इसके बाद मैं गोरखपुर जाकर महंत अवेद्यनाथ से मिला। परमहंसजी के हां कहने की बात बताई तो बोले, ठीक है शुरू करो। मेरा पूरा सहयोग है।

धीरे-धीरे बनने लगा आंदोलन का माहौल
शुरू में बैठकों में बमुश्किल 20-30 लोग आते, पर जरूरत थी किसी ऐसे शख्स की जो लोगों को प्रेरित कर सके। फिर मैं अशोक सिंहल जी से मिला। उन्होंने ही कानपुर में संभाग प्रचारक रहते मुझे प्रचारक बनाया था। सिंहल जी का दौरा शुरू हो गया। सवाल पैदा हुआ मंदिर पर चल रहे कार्यक्रमों को एकजुट करके राममंदिर पर बड़े जनजागरण का। सिंहल जी के बुलावे पर मैं दिल्ली गया। वहां उन्होंने पश्चिम से दिनेश त्यागी को बुला लिया था। वहीं पर पूर्व मंत्री दाऊदयाल खन्ना की हम लोगों से मुलाकात कराई और आगे के आंदोलन की रणनीति बनी।

सिंहल जी और खन्ना जी के एक साथ दौरे तय हुए। राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनी। लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में सभा हुई। इसमें मैंने बिना किसी पूर्व घोषणा के तमाम नवयुवकों के हाथ में बजरंग दल की पट्टियां बंधवा दी थी। इसके पहले बजरंग दल को कोई नहीं जानता था। युवाओं को जोड़ने की इस कोशिश को सभी ने सराहा। इसी सभा में प्रदेश के पूर्व डीजीपी श्रीश चंद्र दीक्षित भी विहिप में आ गए। फिर महिलाओं के लिए मैंने दुर्गावाहिनी की स्थापना की।

अशोक सिंहल ने संभाला नेतृत्व
आंदोलन का विस्तार हो चुका था और समर्थन भी खूब मिल रहा था। सिंहल जी ने पूरे आंदोलन की कमान संभाली। महंत परमहंस और महंत अवेद्यनाथ सहित तमाम संत-महात्माओं का आशीर्वाद व सहयोग मिलना शुरू हो गया। वरिष्ठ प्रचारक रज्जू भैया और भाऊराव देवरस की व्यक्तिगत रुचि  तथा संघ के समर्थन से संसाधन की समस्याएं दूर होने लगीं। जनजागरण के तमाम कार्यक्रम करते हुए शिला पूजन का कार्यक्रम तय किया गया। नारा दिया गया-आगे बढ़ो जोर से बोलो, जन्मभूमि का ताला खोलो। शिलापूजन के साथ ही एक और नारा दिया गया, अयोध्या तो झांकी है मथुरा-काशी बाकी है। वीर बहादुर मुख्यमंत्री थे। महंत अवेद्यनाथ ने कई बार उनसे बात की, लेकिन कुछ बात नहीं बनीं। अंतत: न्यायालय के आदेश से ताला खुलते हुए आंदोलन आगे बढ़ा और शिलान्यास भी हो गया।

मुलायम सिंह माफी मांगें
कारसेवा की घोषणा हुई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोलियां चलवा दीं। राममंदिर आंदोलन के पांच सदी तक चले संघर्ष में लगभग 3.50 लाख लोगों के प्राण गए। आज भी हमारे, आडवाणी जी, जोशी जी, कल्याण सिंह सहित तमाम लोगों पर मुकदमे चल रहे हैं। बजरंग दल पर प्रतिबंध लगा। न्यायाधीश ने बजरंग दल का कार्यालय व कोष पूछा तो मैंने कहा कि मेरा झोला। इसी में सब है। न्यायाधीश मुस्कुराए और अंतत: बजरंग दल प्रतिबंध मुक्त हो गया। इतने बलिदानों के बाद अब रामजी की कृपा से राम मंदिर बनने जा रहा है। पर, मेरा एक आग्रह मुलायम सिंह यादव से जरूर है कि वह भगवान राम के दरबार में आकर माफी मांगने की घोषणा करें, तभी उनका प्रायश्चित होगा। कारण, अब यह सिद्ध हो गया है कि कारसेवक जिस स्थान पर कारसेवा करने जा रहे थे, वह मंदिर ही था।
- Legend News

बुधवार, 20 दिसंबर 2023

साहित्य अकादमी पुरस्कार 2023 की घोषणा, 24 भारतीय भाषाओं के लेखकों को अवार्ड

नई द‍िल्ली। साहित्य अकादमी ने आज बुधवार को वर्ष 2023 के लिए विभिन्न पुरस्कारों की घोषणा कर दी है. अकादमी ने उपन्यास श्रेणी में हिंदी के लिए संजीव, अंग्रेजी के लिए नीलम शरण गौर और उर्दू के लिए सादिक नवाब सहर समेत 24 भारतीय भाषाओं के लेखकों को पुरस्कृत करने की घोषणा की है.

विजेता के नाम की घोषणा साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के श्रीनिवासराव ने नई दिल्ली के मंडी हाउस स्थित रवींद्र भवन में साहित्य अकादमी मुख्यालय में की. पिछली साल हिंदी भाषम में यह पुरस्कार तुमड़ी के शब्द (कविता-संग्रह) के लिए बद्री नारायण को मिला था, जबकि उर्दू में अनीस अशफाक और अंग्रेजी में अनुराधा रॉय को दिया गया था.

क्यों दिया जाता है साहित्य अकादमी पुरस्कार?
साहित्य अकादमी पुरस्कार साहित्य और भाषा के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए दिया जाता है. इससे भारत की समृद्ध और विविध साहित्यिक विरासत को बढ़ावा और संरक्षण मिलता है. साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता को एक लाख रुपये राशि का नकद पुरस्कार दिया जाता है.

24 भाषाओं के लिए दिया जाता है पुरस्कार
साहित्य अकादमी पुरस्कार भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में  शामिल 24 भाषाओं को दिया जाता है. इसमें उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी के अलावा असमिया, बंगाली, डोगरी , कन्नड़, मराठी और मलयालम जैसे क्षेत्रीय भाषाएं शामिल हैं.

कब हुई थी साहित्य अकादमी की स्थापना?
भारतीय भाषाओं के साहित्य और साहित्यकारों को बढ़ावा देने के लिए 1954 में साहित्य अकादमी की स्थापना की गई थी.  इसके पहले अध्यक्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे. वहीं, राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, अबुल कलाम आजाद,, जाकिर हुसैन, उमाशंकर जोशी, महादेवी वर्मा, और रामधारी सिंह दिनकर इसकी पहली काउंसिल के सदस्य थे.

साहित्य अकादमी पुरस्कार का मकसद भारत की समृद्ध और विविध साहित्यिक विरासत को बढ़ावा देना और उसको संरक्षित रखना है. भारत के बाहर भारतीय साहित्य को प्रोत्साहित करने के लिए अकादेमी दुनिया के विभिन्न देशों के साथ साहित्यिक विनिमय कार्यक्रमों का आयोजन भी करती है.
- Legend News

रविवार, 17 दिसंबर 2023

आगम शास्त्र की विषय वस्‍तु यही है कि पत्थर को ईश्वर कैसे बनाया जाये, इसका आध्यात्मिकता से क्या है संबंध


 


आगम शास्त्र हमें मन्दिरों की संरचना से लेकर योजना, वास्तुकला तथा पूजा की विधि के बारे में सब कुछ बताते हैं ।  मंदिर बनाने के इस प्राचीन भारतीय विज्ञान के बारे में आज हम आपको बताते हैं, एक ऐसा विज्ञान जिसके जरिये आप पत्थर जैसी स्थूल वस्तु को एक सूक्ष्म ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं।

आगम शास्त्र का आध्यात्मिकता से संबंध

आगम शास्त्र कुछ खास तरह के स्थानों के निर्माण का विज्ञान है। बुनियादी रूप में यह अपवित्र को पवित्र में बदलने का विज्ञान है। समय के साथ इसमें काफी-कुछ निरर्थक जोड़ दिया गया लेकिन इसकी विषय वस्‍तु यही है कि पत्थर को ईश्वर कैसे बनाया जाये।

यह एक अत्यंत गूढ़ विज्ञान है लेकिन लोगों ने अपनी-अपनी सोच के अनुसार इसका अकसर गलत अर्थ निकाल लिया या फिर और बढ़ा-चढ़ा कर बखान किया। समय के साथ यह इतना अधिक होता गया कि आज आगम शास्त्र एक बेतुकी और हास्यास्पद प्रक्रिया बन कर रह गया है। कोई काम किसी खास तरीके से ही क्यों किया जा रहा है यह जाने बिना लोग बेवकूफी भरे काम कर रहे हैं। लेकिन सही ढंग से किये जाने पर यह एक ऐसी टेक्नालॉजी है जिसके जरिये आप पत्थर जैसी स्थूल वस्तु को एक सूक्ष्म ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं, जिसको हम ईश्वर कहते हैं।

भारत में बहुत सारे मंदिर हैं। मंदिर कभी भी केवल प्रार्थना के स्थान नहीं रहे, वे हमेशा से ऊर्जा के केंद्र रहे हैं। आपसे यह कभी नहीं कहा गया कि मंदिर जा कर पूजा-अर्चना करें, यह कभी नहीं कहा गया कि ईश्वर के आगे सिर झुकाकर उनसे कुछ याचना करें। आपसे यह कहा गया कि जब भी आप किसी मंदिर में जायें तो वहां कुछ समय के लिए  बैठें जरूर। पर आजकल लोग पल भर को बैठे नहीं कि उठ कर चल देते हैं। बैठने का मतलब यह नहीं है। मकसद यह है कि आप वहां बैठ कर ऊर्जा ग्रहण करें, अपने भीतर समेट लें, क्योंकि यह पूजा-अर्चना का स्थान नहीं है। यह वह स्थान नहीं है जहां आप यकीन करें कि कुछ अनहोनी घट जाएगी या जहां किसी व्यक्ति की अगुवाई में आप दूसरों के साथ मिल कर प्रार्थना करेंगे। यह केवल एक ऊर्जा-केंद्र है जहां आप कई स्तरों पर ऊर्जा प्राप्त कर सकेंगे। चूंकि आप खुद कई तरह की ऊर्जाओं का एक जटिल संगम हैं इसलिए हर तरह के लोगों को ध्यान मे रखते हुए कई तरह के मंदिरों का एक जटिल समूह बनाया गया। एक व्यक्ति की कई तरह की जरूरतें होती हैं जिसे देखते हुए तरह-तरह के मंदिर बनाए गये।

उदाहरण के लिए केदारनाथ एक बहुत शक्तिशाली स्थान है, इस स्थान की ऊर्जा काफी आध्यात्मिक तरह की है परंतु केदारनाथ के रास्ते में तंत्र-मंत्र की विद्या से संबंधित भी एक मंदिर है,  किसी ने यहां पर एक छोटा मगर बहुत शक्तिशाली स्थान  बनाया है। यदि किसी व्यक्ति को तंत्र-विद्या के ऊपर काम करना है तो वे इस छोटे-से मंदिर में जाते हैं क्योंकि यहां का वातावरण केदार मंदिर की अपेक्षा ऐसे काम के लिए अधिक सटीक होता है।

आपको आध्यात्मिकता और तंत्र-विद्या के अंतर को समझना होगा। तंत्र-मंत्र एक तरह से एक टेक्नॉलॉजी है, भौतिक ऊर्जाओं के साथ काम करने की टेक्नॉलॉजी। 
आगम शास्त्र एक गूढ़ और जटिल टेक्नॉलॉजी है, जो इसी दायरे की है लेकिन बहुत चमत्कारिक है। हालांक‍ि आध्यात्मिकता की प्रक्रिया इस दायरे की नहीं है। यह वह नहीं है जो आप करते हैं, यह वह है जो आप हो जाते हैं। यह आपके अस्तित्व के वर्तमान अवस्था का परम अवस्था की तरफ बढ़ जाना है। 

आगम में आपकी अवस्था नहीं बदलती है, यह आपके वर्तमान अस्तित्व के बारे में ही आपको एक बेहतर जानकारी देता है। आगम शास्‍त्र महज टेक्नॉलॉजी है। आध्यात्मिकता टेक्नॉलॉजी नहीं है। आध्यात्मिकता का अर्थ अपनी चारदीवारियों के पार जाना है। आध्यात्मिकता वह नहीं है जिसको नियंत्रण में ले कर आप कुछ करते हैं,  यह वह है जो आप स्वयं हो जाते हैं। यह बहुत अलग है।

- अलकनंदा स‍िंंह 

सोमवार, 20 नवंबर 2023

बीज मंत्र... वो छोटे मंत्र जो ब्रह्मांड निर्माण के समय ध्वनि तरंगों से पैदा हुए


 बीज मंत्र बहुत शक्तिशाली मंत्र है जिनका उपयोग हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के आह्वान के लिए किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह छोटे मंत्र ब्रह्मांड के निर्माण के दौरान बनाई गई ध्वनि तरंगों से पैदा हुए थे। इनमें से प्रत्येक मंत्र एक अर्थ से जुड़ा हुआ है। 

प्रत्येक बीज मंत्र के जाप के दौरान जो ध्वनि आवृत्ति बनती है, वह देवी का आह्वान करने का काम करती है। उनकी ब्रह्मांडीय ऊर्जा को शरीर में प्रवाहित करने में मदद करती है। यदि कोई दिव्य आकृतियों की शक्तियों को प्राप्त करने का इरादा रखता है, इन मंत्रों का जाप लगातार इस संदर्भ में चमत्कारी काम करता है। 

वास्तव में प्रत्येक देवता को समर्पित मंत्रों का जाप करना और उनमें बीज मंत्र जोड़ना, यह देवी-देवताओं को अधिक प्रसन्न करता है। इन बीज मंत्रों में शक्ति होती है। ये शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखते हैं।

बीज मंत्र एकल या मिश्रित शब्द होते हैं, जहां शक्ति शब्द की ध्वनि में निहित होती है।

बीज मंत्र कैसे मदद करते हैं 

बीज मंत्र जाप के दौरान बोले जाने वाले प्रत्येक शब्द का एक महत्वपूर्ण अर्थ होता है, क्योंकि यह मंत्र की नींव बीज की तरह होती है। लेकिन शब्दों या ध्वनि को तोड़कर सरल और समझने योग्य भाषा में बदलना सही नहीं है। इन मंत्रों के पीछे के विज्ञान को समझने में काफी समय लग सकता है, फिर भी यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाते हैं। ये प्राकृतिक रूप से प्रकट हुए हैं। इसके बाद ऋषियों द्वारा उनके छात्रों तक पहुंचा और अंत में शेष दुनिया में इसका प्रसारा हुआ। समय के साथ इन मंत्रों ने अपना स्थान बना लिया है। कई अलग-अलग बीज मंत्र हैं, जो अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित हैं। लेकिन ऐसे बीज मंत्र भी मौजूद हैं, जो विभिन्न ग्रहों को समर्पित हैं, जिनके उपयोग से उस ग्रह को शांत किया जा सकता है, जो व्यक्ति विशेष की कुंडली में गड़बड़ी का कारण बन रहा हो या खुद को ग्रह के अशुभ प्रभावों से बचाना हो।

ये बीज मंत्र अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी हैं। जब दृढ़ विश्वास और पवित्र मन से इनका जाप किया जाता है, तो जातक की कोई भी इच्छा पूरी हो जाती है। इस मंत्र का जाप करने के लिए मन का स्थिर एवं शांत होना जरूरी है। शांत मन और ध्यान केंद्रित करने के लिए निरंतर "ओम" मंत्र का उच्चारण किया जा सकता है। इसके बाद विशिष्ट बीज मंत्र का जाप शुरू करना चाहिए। मंत्र को एक समान "ओम" से समाप्त करने से मंत्र पूरे चक्र में आ जाता है।

बीज मंत्रों का जाप कैसे करें 

कहते हैं तन स्वच्छ तो मन स्वच्छ। इसलिए जब भी बीज मंत्रों के जाप की शुरुआत करें, तो उससे पहले स्नान कर लें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।

सुबह-सुबह इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यदि किसी कारणवश आप मंत्र जाप करने से पहले स्नान नहीं कर सकते हैं तो खुद पर पानी की कुछ बूंदें छिड़कें। इसके बाद सफ मन से मंत्र जाप शुरू करें।

मंत्र जाप करने के लिए मन शांत होना चाहिए। शांत मन के लिए ध्यान केंद्रित करना होता। इसलिए जब भी मंत्र जाप करें, एक शांत और खाली स्थान पर बैठें। मंत्र जाप के लिए हमेशा ऐसा स्थान चुनें, जहां कोई मौजूद न हो और कोई भी आपको 30 से 40 मिनट तक परेशान न करे। समय सीमा आप अपने हिसाब से निर्धारित कर सकते हैं।
शब्द और उच्चारण बीज मंत्रों की शक्ति को उजागर करने की कुंजी हैं। हर शब्दांश का स्पष्ट रूप से बहुत दृढ़ संकल्प के साथ उच्चारण करने का प्रयास करें। बीज मंत्रों का जाप करने के सही तरीके पर मार्गदर्शन करने के लिए आप गुरु की मदद ले सकते हैं।
यदि लंबे समयवधि तक मंत्र जाप करने के बावजूद कोई अच्छा परिणाम न मिले, तो हार न मानें। ध्यान रखें कि हर मंत्र को काम करने में समय लगता है। इस प्रक्रिया और स्वयं पर संदेह न करें। खुद पर विश्वास रखें। अगर आपने साफ मन से मंत्रों का जाप किया है, तो अंतिम रूप से अच्छे परिणाम जरूर मिलेंगे। बस थोड़ा सा धैर्य बनाए रखें।
सर्वोत्तम परिणाम देखने के लिए दिन में कम से कम 108 बार मंत्र का जप करें।
आप मंत्राें का उच्चारण करने से पहले खुद को ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें। ध्यान आपको शांति प्राप्त करने में मदद करता है। साथ ही ध्यान करने की वजह से तनाव दूर होता है और आत्मा स्थिर होती है।

महत्वपूर्ण बीज मंत्र 
मूल बीज मंत्र "ओम" है। यह वह मंत्र है, जिससे अन्य सभी मंत्रों का जन्म हुआ है। प्रत्येक बीज मंत्र से एक विशिष्ट देवी-देवता जुड़े हुए हैं। बीज मंत्र के प्रकार हैं- योग बीज मंत्र, तेजो बीज मंत्र, शांति बीज मंत्र और रक्षा बीज मंत्र।

ह्रौं
यह शिव बीज मंत्र है। यहां "ह्र" का अर्थ शिव और "औं" का अर्थ सदाशिव है। भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव को ध्यान में रखकर ही इस मंत्र का जाप करें।

दूं
यह मंत्र देवी दुर्गा को समर्पित है। उनका आशीर्वाद और उनसे सुरक्षा प्राप्त करने के लिए इसका जाप किया जाता है। "द’’ का मतलब दुर्गा और "ऊ" का मतलब सुरक्षा है। यहां बिन्दु क्रिया (प्रार्थना) है। यह मंत्र देवी दुर्गा की ब्रह्मांड की मां के रूप में स्तुति करता है।

क्रीं
यह मंत्र मां काली को समर्पित है। इस मंत्र में विशेष शक्तियां हैं, जो माता पार्वती के अवतारों में से एक मां काली को प्रसन्न करती है। यहां "क" का अर्थ है मां काली, "र" ब्रह्म है और "ई" महामाया है। कुल मिलाकर इस मंत्र का अर्थ है कि महामाया मां काली मेरे दुखों का हरण करो।

गं
यह बहुत ही शुभ मंत्र है। यह बीज मंत्र भगवान गणेश से संबंधित है। "ग" गणपति के लिए उपयोग किया गया है और बिंदु दुख का उन्मूलन है अर्थात श्री गणेश मेरे दुखों को दूर करो।

ग्लौं
यह भी गणेश के बीज मंत्रों में से एक मंत्र है। यह मंत्र भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए है। इसमें "ग" स्वयं भगवान गणेश हैं, "ल" का अर्थ है व्याप्त है और "औं" का अर्थ है प्रतिभा।

ह्रीं
यह देवी महामाया बीज मंत्र है, जिसे ब्रह्मांड की माता भुवनेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां "ह" का अर्थ है शिव, "र" प्रकृति है और "ई" महामाया और ‘बिंदु’ दुख हर्ता है। इस मंत्र को दुर्भाग्य को दूर करने के लिए सहायक माना जाता है।

श्रीं
यह लक्ष्मी बीज मंत्र है। इस मंत्र को धन प्राप्ति के लिए जप किया जाता है। इस मंत्र में "श्र" महालक्ष्मी के लिए है, "र" धन के लिए है और "ई" पूर्ति के लिए है। जब कोई धन और समृद्धि के लिए महालक्ष्मी को जगाने की कोशिश कर रहा हो, तो उसे इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यह बीज मंत्र बहुत फायदेमंद है।

ऐं
इस बीज मंत्र से मां सरस्वती का आविर्भाव होता है। अगर कोई ज्ञान और शिक्षा के लिए प्रार्थना करना चाहता है, तो यह बीज मंत्र आवश्यक है। मां सरस्वती शिक्षा, ज्ञान, संगीत और कला की देवी हैं। यहां "ऐं" का अर्थ है, हे मां सरस्वती।

क्लीं
यह बीज मंत्र भगवान कामदेव के लिए है। वह प्रेम और इच्छा के देवता हैं। इस बीज मंत्र के जरिए कामदेव की प्रार्थना की जाती है। यहाँ "क" का अर्थ कामदेव है, "ल" इंद्र देव के लिए है और "ई" संतुष्टि के लिए है।

हूं
यह शक्तिशाली बीज मंत्र भगवान भैरव से जुड़ा है। भगवान भैरव, भगवान शिव के उग्र रूपों में से एक हैं। इस मंत्र में "ह" भगवान शिव है और "ऊं" भैरव के लिए है। कुल मिलाकर इस मंत्र का अर्थ है, हे शिव मेरे दुखों को नाश करो।

श्रौं
भगवान विष्णु के रूपों में से एक भगवान नृसिंह इस शक्तिशाली बीज मंत्र से उत्पन्न होते हैं। "क्ष" नृसिंह के लिए है, "र" ब्रह्म हैं, "औ" का अर्थ है ऊपर की ओर इशारा करते हुए दांत और "बिंदु" का अर्थ है दुख हरण। इस मंत्र के माध्यम से ब्रह्मस्वरूप नृसिंह से प्रार्थना की जा रही है कि हे भगवान मेरे दुखों को दूर करो।

- अलकनंदा स‍िंंह 

https://www.legendnews.in/single-post?s=beej-mantras-those-small-mantras-that-were-born-from-the-sound-waves-created-during-the-creation-of-the-universe-12815 

मंगलवार, 17 अक्तूबर 2023

सामाजि‍क व्यवस्थाओं के साथ ख‍िलवाड़ है समलैंगिक विवाह की बात


 समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्‍यता देने की याचिका कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है. इस पीठ के 5 में से 4 जजों ने बारी-बारी से अपना फैसला सुनाया. सबसे पहले CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में समलैंगिकों को शादी का अधिकार देने की बात पर जोर दिया.  इसके अलावा उन्‍होंने समलैंगिकों के साथ होने वाले भेदभाव को दूर करने को लेकर निर्देश भी जारी किये.

सुप्रीम कोर्ट बेंच के चारों जजों के फैसलों का लब्‍बोलुआब

- किसी भी तरह का कानून बनाने का अधिकार संसद का है, इसलिए समलैंगिक विवाह पर कानून बनाने के लिए भी वहीं विचार होना चाहिए. - सॉलिटर जनरल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि य‍दि जरूरी हुआ तो संसद इस बारे में एक उच्‍चस्‍तरीय समिति बनाकर विचार करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील के प्रति सहमति दिखाई. - भारतीय संविधान में शादी का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन रिलेशनशिप को मान्‍यता दी गई है. इसलिए यदि कोई समलैंगिक जोड़ा अपने रिश्‍ते को किसी भी प्रकार से प्रकट करने के लिए स्‍वतंत्र है.

- बच्‍चा गोद लेने के अधिकार को लेकर CJI और जस्टिस भट्ट के बीच काफी मतांतर दिखा. CJI इसके पक्ष में थे, जबकि जस्टिस भट्ट ने इसका विरोध किया (जस्टिस भट्ट ने इसकी वजह को पढ़ने से मना कर दिया). - समलैंगिक विवाद को कानूनी मान्‍यता देने से महिलाओं पर इसके दुष्‍प्रभाव पड़ने की बात रेखांकित हुई. जस्टिस भट्ट ने कहा कि अभी घरेलू हिंसा और दहेज से जुड़े कानूनों में महिला के रूप में पत्‍नी को काफी अधिकार हैं, जो खतरे में पड़ सकते हैं. 

- समलैंगिकों के साथ किसी भी तरह के भेदभाव को दूर करने के मुद्दे पर सभी जस्टिस एकमत थे. और  CJI चंद्रचूड़ ने इसके लिए विस्‍तृत दिशा निर्देश जारी किये. 

अब बात आती है क‍ि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में गे राइट्स विशेषकर शादी के अधिकारों को लेकर विरोध क्यों कर रही थी? अगर विरोध कर रही थी तो उसके तर्क क्या थे? और उन तर्कों के आधार पर यदि समाज के पड़ने वाले प्रभाव को देखा जाए तो किस उथल-पुथल की आशंका जताई गई थी. 

पति और पत्नी के अलग-अलग राइट्स हैं, पर कैसे पता चलेगा, कौन पति-कौन पत्नी?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कुछ पॉइंट्स ऐसे रखे थे जो निश्चित तौर पर समाज में बड़े पैमाने पर समस्या का कारण बन सकते हैं. दरअसल सेम सेक्स मैरिज में यह समझना कठिन होगा कि कौन पति है तो कौन पत्नी है. इसलिए बहुत से ऐसे कानून जो महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाए गएं हैं उनपर एक्शन कैसे होगा यह सरकार के लिए चिंता का विषय है. जैसे सेम सेक्स मैरिज के बाद अगर तलाक की नौबत आती है तो कानून कैसे काम करेगा? 

विशेष वर्ग में तलाक का कानून भी सभी लोगों के लिए एक बन सकता है? ट्रांस मैरिज में पत्नी कौन होगा? गे मेरिज में कौन पत्नी होगा? गे मेरिज में कौन पत्नी होगा? इसका दूरगामी प्रभाव होगा. अभी जो कानून प्रचलन में है उसमें पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है, लेकिन समलैंगिक शादियों में क्या होगा? कैसे निर्धारित होगा कौन पति है कौन पत्नी है? 

महिलाओं के अधिकारों की चर्चा करते हुए मेहता कहते रहे कि दहेज हत्या या घरेलू हिंसा के मामले जटिल हो जाएंगे.  'अगर कानून में पति या पत्नी की जगह सिर्फ स्पाउस या पर्सन कर दिया जाए, तो महिलाओं को सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार न करने के प्रावधान कैसे लागू होंगे?'  

अनैतिक संबंधों में छूट की होगी डिमांड 
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक बहुत सेंसिटिव मुद्दे को उठाया था.  उन्होंने सेम सेक्स मैरिज को मौलिक अधिकार बताए जाने को बेहद जटिल बताया था. मेहता ने कहा था कि सेम सेक्स मैरिज को मान्यता के दावे को मौलिक अधिकार समझकर अगर सही माना जाए तो भविष्य में और बहुत से नैसर्गिक अधिकारों की डिमांड शुरू हो जाएगी.समाज में नजदीकी वर्जित संबंध जैसे नियम परंपराएं मानव समाज की ही बनाई हुई हैं. मेहता कहते हैं कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन और पसंद के अधिकार के दावे शुरू हो सकते हैं.  दरअसल पसंद के अधिकार और सेक्सुअल ओरिएंटेशन के मामले को याचिकाकर्ता ने उठाया है और सेम सेक्स में इसी आधार पर शादी की मान्यता की गुहार लगाई है.  मेहता का कहना है कि इसी आधार पर आने वाले समय में तो वर्जित संबंधों में रिलेशनशिप के मामलों को पसंद का मामला बताया जाएगा.  और सेक्सुअल ओरिएंटेशन का मामला बताकर राइट्स की मांग की जाएगी.

समाज सुधार का हक समाज को है 
देश में समाज सुधार का इतिहास बहुत पुराना है. सती प्रथा और विधवा विवाह के लिए बंगाल में जबरदस्त अभियान चला. बाल विवाह की उम्र बढ़ाने की बात हो या कोई बड़े सामाजिक बदलाव लाने वाले हर कदम पर बड़े पैमाने पर समाज में बहस हुई है. विधवा पुनर्विवाह के मुद्दे पर बंगाल में खूब बवाल हुआ था. महिलाओं की शादी की उम्र घटाने और एज ऑफ कंसेंट बिल को लेकर बाल गंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले अलग-अलग खेमों में बंट गए.  बंगाल में राधाकांत देब और महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक, स्वामी विवेकानंद, श्री अरबिंदो और महात्मा गांधी चाहते थे कि विदेशी शासक भारत की जनता के प्रतिनिधि नहीं हैं और हिंदू रीति-रिवाजों के बारे में कानून बनाने का उन्हें कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए.  

इनका कहना था कि बुद्ध, आदि शंकराचार्य, गुरु नानक और ज्योतिबा फुले जैसे महान समाज सुधारकों ने अपने संदेश समाज सुधार का आगे बढ़ाया. 

समलैंगिकों की शादी को कानूनी दर्जा देने के बारे में देश में सार्वजनिक बहस कराने के लिए कोई खास कोशिश होती नहीं दिखी. LGBTQIA++ कम्युनिटी भले ही इस पर चर्चा कर रही हो, लेकिन प्रस्तावित बदलावों से जिस तरह का बड़ा असर पड़ने वाला है, उसे देखते हुए कोई बड़ी सामाजिक बहस होती चाहिए थी. जो भी चर्चा है, वह दिल्ली की कानूनी बिरादरी के एक छोटे से तबके में और इंग्लिश मीडिया में दिख रही है. भारत लोकतांत्रिक संविधान से चलता है, ऐसे में यह मानना कि इंडियन स्टेट सेम सेक्स मैरिज जैसे विषय पर फैसला करने लायक नहीं है, एक मजाक ही है. 

मनचले लोगों को बहाना मिल जाएगा 

समाज में ऐसे लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है जिनका सेक्सुअल ओरिएंटेशन कुछ समय बाद बदल जाया करता है.  तमाम राजा महाराजाओं, मुगल शासकों का इतिहास बताता है कि इन्होंने शादी भी की , उनसे बच्चे भी हुए और इनके संबंध सेम सेक्स वाले से भी रहे. बॉलीवुड हो या भारतीय राजनीति , बिजनेस वर्ल्ड हो या फैशन संसार  हर जगह इस तरह के किस्से आम हैं. बीस साल सफल वैवाहिक जीवन के बाद अगर किसी का सेक्सुअल ओरिएंटेशन बदलता है तो इसे क्या कहा जाएगा?  सेक्सुअल ओरिएंटेशन बदलने की घटनाएं बड़े लोगों में ही नहीं छोटे कस्बों और गांवों में भी देखने की मिलती है.यहां बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो दोनों तरह के संबंधों में हैं. इनमें महिलाएं और पुरुष दोनों ही शामिल हैं. तमाम ऐसी महिलाएं हैं जिनके कई बच्चे होने के बाद वो सेम सेक्स रिलेशनशिप में है.  

कानून बनाने से पहले जनता को ये फैसला करने की सुविधा देनी होगी जिससे पता लगाया जा सके कि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से विपरीत लिंग के साथ आकर्षित है या सेम सेक्स के लिय़े. इस तरह का कानूनी अधिकार मिलने से निश्चित रूप से अरबन इलीट को ही फायदा मिलने वाला है. 

- अलकनंदा स‍िंंह